बिलासपुर। दशहरा पर रावण के रेडिमेड पुतलों की दुकानें सज गई हैं। बच्चे अपने माता-पिता से रेडीमेड रावण लाने की जिद करने लगे हैं। पिछले लगभग एक दशक से घर के आंगन में भी रावण दहन का नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि बेरोजगारों को भी दशानन निर्माण के माध्यम से रोजगार मिल रहा है।
पिता अपने बच्चों की जिद पूरी करने के लिए रावण खरीदने निकल पड़े हैं। रंगबिरंगे पुतलों की साइज के हिसाब से कीमत जान बारगनिंग भी हो रही है। बच्चों के अभिभावक डॉक्टर हों या इंजीनियर या फिर बिजनेसमैन शिक्षक बैंक कर्मचारी सरकारी अफसरान या कर्मचारी। सभी प्रोफेशन के मम्मी पापा इन दिनों अपने बच्चों की जिद से परेशान हैं। स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चे अभी से इस साल दहन के लिए रावण लाने की जिद करने लगे हैं। जिद यह कि इस बार का रावण पुतला पिछले साल से उंचा होना चाहिए। दशहरा की छुट्टी में स्कूली बच्चे रावण दहन के उत्सव को फुल मौज मस्ती के साथ मनाने के लिए बेसब्र हो रहे हैं।
सचिन अपने घर परिवार के छोटे बच्चों के लिए पिछले चार-पांच साल से हर साल रेडीमेड रावण खरीद कर ला रहे हैं। लेकिन बच्चों ने अभी से जिद करना शुरू कर दिया है। अब वह शहर में घूम कर रावण बिक्री की दुकान ढूंढ रहे हैं। पिछले साल संस्कार और सारिका दोनों पति-पत्नी को अपने बच्चों की जिद पूरी करने के लिए खुद रावण का पुतला बनाना पड़ गया था।
प्रतीक वर्मा हेमंत पांडेय उदय सिंह गहलोत आज से 40 साल पहले अपने बचपन की याद करते हुए बताते हैं कि उन दिनों शहर में बहुत कम स्थान पर रावण दहन का सार्वजनिक आयोजन किया जाता था। रावण के पुतले को लिटाकर बांस बल्ली पैरा कागज रस्सी का उपयोग करते हुए बनाया जाता था। एक दो महीने पहले से रावण को बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती थी जिससे कि दशहरा आने तक अच्छा खासा माहौल क्रिएट हो जाया करता था। अब मोबाइल इंटरनेट सोशल मीडिया का जमाने में रावण दहन का हर्ष उल्लास भी पहले जैसा उत्सुकता भर नहीं रहा है लेकिन आज नई पीढ़ी के छोटे बच्चों के मन में रावण के जिंदगी के बारे में जानने को लेकर जिज्ञासा बनी रहती है। पहले के जमाने में दशहरा से दीपावली के बीच जगह-जगह शहर में रामलीला का मंचन भी हुआ करता था लेकिन आज की बात कर तो रेलवे परिक्षेत्र स्थित हिंदुस्तानी सेवा समाज समिति ने शहर में रामलीला का गौरव बचा रखा है
चुनाव के बीच रावण – चुनाव के चलते रावण दहन की राजनीति की संभावना कम है। नगर निगम नहीं बना रहा है। सामाजिक संगठनों के रावण के पुतले मारकर विधानसभा प्रत्याशी अपना राजनैतिक दमखम दिखाएंगे।


