बिलासपुर। आमतौर पर देश की शिक्षा व्यवस्था में यह सवाल अक्सर उठाया जाता रहा है कि अब के बच्चे हाई स्कूल पास हो गए पर न तो सही ढंग से पढ़ना आता है और न लिखना।गिनती पहाड़ा को तो पूछिए ही मत।इसका सही जवाब ढूंढना है तो प्राथमिक शिक्षा की ओर जाना होगा। बहुत पहले आज से लगभग 8०-9० के दशक तक स्कूली शिक्षा गांव के कच्चे मकान या पेड़ के नीचे एक या दो शिक्षक के सहारे दी जाती थी। तब शिक्षक गांव में ही रहा करते थे या फिर नजदीक के गांव से आते थे। पूरे समय सुबह से शाम तक विद्यालय चलते रहता था। गुरुजी अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान को बच्चों को रटा डालते थे। लगभग प्रतिदिन गिनती,पहाड़ा और इमला का कालखंड होता था।स्लेट और पेंसिल से बच्चे फटाफट इमला लिख डालते थे और पूरा पाठ बिना रुके पढ़ लेते थे। कैसे भी गणित हो,मनगणित हो बच्चे स्लेट में बना लेते थे।आज के जैसा कोई भी सहायक पाठ्यसामग्री जैसे कुंजी,गाइड,ट्यूशन, कैलक्यूलेटर, यूट्यूब आदि के सर्वथा अभाव में बच्चों के लिए सब कुछ गुरु ही हुआ करते थे। स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त बच्चों को नैतिक शिक्षा और व्यवहारिक शिक्षा भी दी जाती थी।स्कूल परिसर की साफसफाई, पेड़ पौधों का रखरखाव, क्यारी में सब्जियां उगाने का काम सब बच्चे ही किया करते थे।उस समय बच्चों को जो भी शिक्षा मिलती थीं वह ठोस रहता था। कम विषय,कम पाठ्यक्रम में अधिक ज्ञान मिला करता था।पर आज इसके विपरीत हो रहा है अधिक विषय,बहुत अधिक पाठ्यक्रम में बच्चा कुछ भी सीख नहीं पा रहा है।अब ऐसे नींव पर खड़े महल की स्थिति आप बखूबी समझ सकते हैं।मेरा यह मानना है कि प्राथमिक शिक्षा में कम विषय, कम पाठ्यक्रम पर शिक्षा उच्च स्तर की हो। गिनती,पहाड़ा, इमला,मनगणित प्रतिदिन बच्चों को सिखाया जाए तो आगे की पढ़ाई बच्चों के लिए आसान रहेगी। रश्मि रामेश्वर गुप्ता व्याख्याता शा उ मा वि लिगियाडीह
प्रथम गुरु मां,,
शिक्षा हमारे जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। जिस तरह हमारे शरीर का पोषण भोजन से होता है उसी तरह हमारे मन और मस्तिष्क को बलवान बनाती है शिक्षा। जिस तरह भोजन का सात्विक होना हमारे लिए आवश्यक है उसी तरह शिक्षा के साथ साथ संस्कार का होना भी आवश्यक है । जब भी हम शिक्षा की बात करते है तो हमे गुरु की याद आती है। गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त करना संभव ही नहीं । प्रथम गुरु तो मां ही होती है ये अटल सत्य है फिर हमारे विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाएँ है जो हमारा मार्गदर्शन करते है। वह शिक्षक ही है जो हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाकर हमारे जीवन को सुखमय बनाते है। हमारी कमियों से हमे अवगत करा के उसे दूर करने का प्रयास करते है।
रामेश्वर गुप्ता व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एरमसाही
मस्तूरी


