
बिलासपुर। आग्रहव्रत अभियान के तीन दिवसीय प्राथमिक वर्ग झुंझनू राजस्थान में संपन्न हुआ।जिसमें देश के कोने कोने से सौ से अधिक व्रती शामिल हुए। जिसमंे हिदुत्व वादी चितक व शोधकर्ता सुनील अग्रवाल ने तथ्यपरक विवरण देते हुए बताया कि हमें भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति क्यों होती हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था, नारी का सम्मान, सह अस्तित्व, दूसरी उपासना पध्दति का सम्मान, तर्क आधारित विवेकपूर्ण निर्णय लेने की स्वतंत्रता, सुधारवादी, प्रगतिशील समाज, समानता का अधिकार, बोलने की स्वतंत्रता, धर्मग्रंथों व ईश्वर पर चर्चा करने का अधिकार आदि अनेको सद्गुण केवल हिदुत्व में ही पाए जाते है। संस्कृत में नदी को सिधु कहते है। भारत में बारहमासी नदियों का जाल होने से इसे सिन्धुओं का स्थान अर्थात सिधुस्थान कहां जाता रहा होगा। भाषा मुख-सुख खोजती हैं। जैसे सप्ताह का हप्ता हुआ। वैसे ही सिधुस्थान से हिदुस्तान हुआ।
अत: हिदुस्तान में निवासरत समस्त नागरिक हिदू कहलाये जाते हैं। धर्म का अर्थ किसी भी पूजा पध्दति अथवा कर्मकांड से नहीं होता हैं। अपितु प्यासे को पानी पिलाना, माता-पिता की सेवा करना, गिरते को सहारा देना नैतिक धर्म हैं। देश की रक्षा करना सैनिक का धर्म हैं। पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, माता-पिता के रूप में एक ही व्यक्ति के अलग अलग धर्म होते हैं।
इससे स्पष्ट होता हैं कि भारत के प्रत्येक भारतवासी हिदू हैं। लेकिन जिनकी करणीय व अकरणीय की कसौटी भारत माता के प्रति होती हैं तथा उनके आस्था का केंद्रबिदु देश मे रहता हैं। केवल उनमे ही हिदुत्व का भाव होता हैं। हिदुत्व की प्रत्येक विधि व्यवस्था वर्तमान वैज्ञानिक कसौटियों पर खरी उतरती हैं। हमारे पूर्वज इतने ज्ञानी थे कि उस समय बिना किसी आधुनिक साधनों के ग्रहों की सटीक काल गणना की थी।
1 जनवरी के बजाय वर्ष प्रतिपदा पर नववर्ष का शुभारंम्भ भी विज्ञान सम्मत हैं। अस्पर्शयता के कारणों पर विस्तृत चर्चा करते हुए, उन्होंने बताया कि वैदिक काल मे पेशे या व्यवसाय के आधार पर आबादी ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य तीन वर्गो में विभाजित की जाती थी। जिसमें समय समय पर एक वर्ण से दूसरे वर्ण में जाने की स्वतंत्रता होती थी। यदि किसी कार्यवश उपरोक्त तीनों ही वर्णों से पृथक होकर सेवा कार्य करता था तो उसे सँख्या के आधार पर क्षुद्र वर्ग कहां जाता था। जो कालांतर में शुद्र कहां जाने लगा।
पहली बार 712 मे मोहम्मद बिन कासिम ने अंतिम हिदू राजा दाहिर के पराजित होने से भारत मे इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ। इस्लाम शासकों ने अपने राज्य की मजबूती तथा धर्म के विस्तार हेतु हिदुओ को मजबूर किया गया। आग्रह व्रत अभियान का एकमात्र उद्देश्य हिदुओ को उनके वैभवशाली इतिहास से परिचित करवाते हुए,देश मे हिदू हिदू में भेदभाव समाप्त कर समरस समाज का निर्माण करना है।
तीन दिवसीय आध्यात्मिक वर्ग में सुनील अग्रवाल, भूतदत्त शर्मा, त्रिभुवन पांडेय, आभा पांडेय, ललित अग्रवाल, निशा अग्रवाल, रमेश सरावगी, सीमा सरावगी, सोनम अग्रवाल, दुर्गेश शेखर, आशुतोष त्रिपाठी, विनोद कुमार, मिथुन, मयंक, दीपक, अनेकराज, मृदुल, मनोज, अरविद द्बिवेदी, शिल्पी द्बिवेदी, अनुराग शाक्य, अरुण पंडित समरेंद्र संतासिस, राजू देवान सहित सैकड़ों की तादात में आग्रहव्रति देश के कोने कोने से शामिल हुए।

