
श्रीकांत को कविता में जो खुशी और आलोचना में जो वसंत मिलना चाहिए था नहीं मिला- लीलाधर मंडलोई
बिलासपुर।श्रीकांत वर्मा पीठ बिलासपुर द्वारा स्मरण श्रीकांत 2023 ,दो दिवसीय आयोजन का शुभारम्भ हुआ।
शुभारंभ सत्र में देशभर से आए साहित्यकारों पत्रकारों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । पीठ के अध्यक्ष रामकुमार तिवारी ने पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का सम्मान किया एवं अपने स्वागत भाषण में कहा कि श्रीकांत वर्मा जी के अवसान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में देशभर के साहित्यकारों का स्वागत है।विशेषकर 88 वर्षीय देश के श्रेष्ठ पत्रकार लेखक और श्रीकांत जी के मित्र त्रिलोक दीप जी का हृदय की गहराइयों से स्वागत किया।
दिल्ली से आये श्रीकांत वर्मा के मित्र त्रिलोक दीप ने अध्यक्षता की । मुख्य अतिथि मुकेश वर्मा थे।कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप मे लीलाधर मंडलोई राजेश सकलानी, शैलजा पाठक, ऋषिकेश सुलभ और त्रिलोक महावर रहे।
दो दिवसीय आयोजन का पहला सत्र मैं सदियों के अंतराल में श्रीकांत वर्मा का सृजन संसार का प्रारंभ हुआ जिसमें सर्वप्रथम भोपाल से आए विख्यात लेखक गीत चतुर्वेदी ने कहा कि
श्रीकांत वर्मा पर जब भी वैचारिक हमले हुए उनका जवाब उन्होंने हमेशा बौद्धिकता से दिया है। उन्होंने उनके कहानी पक्ष पर बात करते हुए कहा कि श्रीकांत वर्मा की कहानियों में आम आदमी का अंतर्द्वंद रेखांकित होता है। उन्होंने उनकी कहानियों में उपस्थित महत्वपूर्ण बिंदुओं जिसमें समय की भीड़ भाड़ ,जीवन का अंधकार, समकालीन नर्क का भूगोल, अस्तित्व का प्रकाश और अंधकार,अनिर्णय अविश्वास और असमंजस से लिपटा हुआ प्रेम, कहानियों के जड़ में अस्तित्ववाद ,मानवीय संबंधों का बिखराव आदि पर विस्तृत चर्चा की।
दुर्ग से आए आलोचक साहित्यकार जयप्रकाश ने कहा कि श्रीकांत वर्मा तीव्र आवेगों के कवि हैं। उनकी रचना में ज्ञान का संवेदनात्मक पक्ष और संवेदना का ज्ञानात्मक पक्ष परिलक्षित होता है। वे बिलासपुर में रहते हुए नई कविता के नए विकास के नए रास्ते की खोज करने में जुट चुके थे। मुक्तिबोध और श्रीकांत ने समाज के संत्रास को समझा और रचना का अंग बनाया।
दूरदर्शन के भूतपूर्व महा निदेशक एवं विख्यात साहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने कहा कि श्रीकांत जी को कविता में जो खुशी और आलोचना में जो बसंत मिलना चाहिए था नहीं मिला। उन्होंने उन्हें याद करते हुए अपनी कविता ‘उसकी कविताओं की सदाएं मुस्तक पहुंचती हैं’ सुनाई। उन्होंने आपातकाल के बाद श्रीकांत वर्मा में हुए बदलाव और उनकी कविताओं में उठने वाले भावों पर चर्चा की । विष्णु नागर को लिखे पत्र में श्रीकांत जी ने कहा था जब किसी की हत्या की जाती है तो पहले माहौल बनाया जाता है अपने विश्वासों के लिए अपनी बलि देनी होती है यह संसार बहुत निर्मम है। यह बातें उनकी कविताओं में उनकी रचना में परीक्षित होती हैं।
श्रीकांत वर्मा जी के मित्र और दिनमान में उनके साथ रहे पत्रकार साथी त्रिलोक दीप ने उनसे मुलाकात फिर दोस्ती फिर याराना के संस्मरण सुनाए जिसे दर्शकों ने हाथों हाथ लिया। उन्होंने कहा कि श्रीकांत वर्मा एक अच्छा यार और सच्चा पत्रकार था। उन्होंने उनके कार्य करने का तरीका, व्यक्तित्व, दोस्तों के साथ याराना, उनके राजनीतिक विचार और उनकी पत्रकारिता पर चर्चा की। उन्होंने 1967 में बिहार में अकाल के समय उनके साथ किए पत्रकारिता के अनुभव साझा किए जो बहुत मार्मिक थे। उन्होंने दिनमान के उन दिनों को याद किया जब अज्ञेय ,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना श्रीकांत वर्मा और मनोहर श्याम जोशी के साथ में काम किया करते थे ।उन्होंने कहा वह दौर ऐसा दौर था जहां हर आदमी आदमी पर भरोसा करता था श्रीकांत जी हमसे कहते थे कि पत्रकार का काम जीवन के भीतर तक जाना है। श्रीकांत वर्मा पहले कलाकार पत्रकार थे उनके राजनीतिक विचार और वक्तव्य उसके पश्चात आते हैं।
सत्र का प्रभावी संचालन शिक्षाविद और संस्कृति कर्मी विवेक जोगलेकर ने किया।
पहले दिन का दूसरा सत्र कहानी समय का था। जिसमें देश के सुविख्यात कहानीकारों ने अपनी कहानियां पढ़ी। जिसमें मलखान गिरी से आई परिधि शर्मा ने अपनी कहानी ‘एक छूटती मेट्रो-एक तस्वीर एक लडक़ी में एक युवा लड़के की कहानी है जो दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहा है और एक क्लब में डिस्को जोकी का काम कर रहा है।यह अधूरे प्रेम और जीवन की पूर्णता की कहानी है।जिसमें कहानी के पात्र मेट्रो सिटी के भागते दौड़ते जीवन में मनुष्य के मूल चरित्र को ढूंढने का प्रयास करते हैं।
अंबिकापुर के वरिष्ठ साहित्यकार प्रभु नारायण वर्मा ने गर्म दोपहर शीर्षक की कहानी पढ़ी जिसमें मध्यवर्गीय जीवन की विडंबनाओं को रेखांकित किया गया है
जबलपुर से आए वरिष्ठ कहानीकार राजेंद्र रानी ने अपनी पहली कहानी मेंडोलिन में एक ऐसे मनुष्य की बात करता है जो जटिल है पर वास्तविक है।दूसरी कहानी ‘एक झूठे की मौत’ में मनुष्य के ऐसे चरित्र का वर्णन है जो आज की सामाजिक स्थति में अविश्वसनीय है।असली मनुष्य की खोज है।
हिंदी के प्रतिष्ठित कहानीकार मुकेश वर्मा ने कहानी ‘जूते’ में शहर में साम्प्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि में एक छोटे बच्चे की मानसिक स्थिति और उसकी त्रासदी को वर्णित किया है।
सत्र का संचालन वरिष्ठ आलोचक जयप्रकाश ने किया।
कार्यक्रम में साहित्यकार,विद्यार्थी,पत्रकार और शहर वासी मौजूद रहे।
स्मरण श्रीकांत 2023 में दूसरे दिन आज उपन्यास और कविता के सत्र होंगें।जिसमे देश के जाने माने रचनाकारों को सुनने का मौका मिलेगा।जिसमें हृषिकेश सुलभ(पटना),लीलाधर मंडलोई(दिल्ली),आनंद हरसुल(रायपुर),गीत चतुर्वेदी(भोपाल),अनिल यादव(लखनऊ),त्रिलोक महावर(रायपुर)संजय अलंग(बिलासपुर) ,राजेश सकलानी(देहरादून),शैलजा पाठक(मुम्बई),वसु गंधर्व(कोलकाता),अनुराधा सिंह(बैंगलौर),जोशना बैनर्जी आडवाणी(आगरा),मांझी अनंत(धमतरी) रहेंगे।

