
* बचपन बीता आई जवानी भूल गए वो सारी कहानी, दादी जिसको रोज सुनाती हस हस कर वो हमे सुनाती
* पापा जब हैं बनते दादा, त्यौहारों से मनते दादा, पोते की हर बात मानते, मूंछों जैसे तनते दादा
बिलासपुर।कला एवं साहित्य के लिए समर्पित अखिल भारतीय संस्था संस्कार भारती जिला इकाई बिलासपुर, राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर एवं रेलवे महाराष्ट्र मंडल बिलासपुर के संयुक्त तत्वावधान में दादा दादी, नाना नानी विषय पर केंद्रित काव्य गोष्ठी का आयोजन डा. विनय कुमार पाठक के मुख्य आतिथ्य, सुनील दत्त मिश्रा फिल्म एक्टर, राइटर की अध्यक्षता एवं इस. विश्वनाथ राव जी समाजसेवी के विशिष्ट आतिथ्य में रेलवे महाराष्ट्र मंडल टिकरापारा में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की शुरुवात मां भारती के तैलचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया, मंचाशीन अतिथियों के स्वागत उपरांत काव्य गोष्ठी की शुरुवात हुई। बुजुर्ग माता पिता को अपनी भावनाएं समर्पित करने सर्वप्रथम उपस्थित हुए श्री राजेश सोनार जिन्होंने ” दुलपुतरी अइसन दिखत हे मोर सुघ्घर नतनीन नोनी, आशा चंद्राकर ने “दादा – दादी नाना – नानी सुनाते थे परियों के किस्से”, कवयित्री शुभा भौमिक ने “याद आती है बहुत ननिहाल की, वो बेफिक्र मस्ती वो फव्वारे हंसी के”, दिनेश तिवारी ने “बुजुर्ग हैं तो घर का आधार है, बुजुर्ग है तो बड़ों का सत्कार है, बुजुर्ग हैं तो घर इक परिवार है, बाल कवि अभ्युदय श्रीवास ने ” नाना जब ऑफिस से आते, चॉकलेट साथ में लाते है जिसे हम सभी मिल बांटकर खूब मजे से खाते है”, अंजनी कुमार तिवारी ने “बिना बताये मुझे, जाने कौन सा देश चली गई ” बालमुकुंद श्रीवास ने दादी को याद करते हुए ” बचपन बीता आई जवानी भूल गए वो सारी कहानी, दादी जिसको रोज सुनाती, हस हस कर वो हमे बताती”, कवयित्री पूर्णिमा तिवारी ने “दादा दादी नाना नानी ये वट वृक्ष समान, “मयंक मणि दुबे ने ” पापा जब हैं बनते दादा, त्यौहारों से मनते दादा, पोते की हर बात मानते, मूंछों जैसे तनते दादा”, प्रियंका स्वाईं ने “उस हाथ को अक्सर ही मेरा मन तरसता है, आशीर्वाद से जिनके घर आंगन महकता है”, सीमा भट्टाचार्य ने ” पुनर्जीवन यथा एक वृक्ष प्रांगण में हो प्रतिष्ठित, छविंद्र सहारे ने “दादा दादी ,नाना नानी कितना प्यारा नाता है “, संतोष शर्मा ने “मिल गया है श्री दादा जी का हमें आसरा ऐसा ब्रह्मांड में मिला न कोई दूसरा”, शोभा त्रिपाठी ने “रिस्ते के इस महाकुंभ मे, न्यारा रिश्ता दादी का”, संगीता बनाफर ने ” चिपका लेती थी छाती से, हर डर से मुझे बचाती थी, उनकी झुर्रियों में मुझे सिर्फ खूबसूरती नजर आती थी”, ओमप्रकाश बिरथरे जी ने ” होते न अगर दादा-दादी,बचपन में मज़ा कैसे आता “, आर एन राजपुत ने ” कौन सुनाए कथा कहानी, समझूं क्या इस संसार को”, सुनील वर्मा ने “घर का हरेक कोना जिन्होंने, खुशियों से सजाया”, रेखराम साहू ने ” पोता प्यारा राजा बनाता, पोती बन जाती रानी”, रेणु बाजपेई ने “उन बूढी आँखों में अब सैलाब बहा करते हैं, जागी आँखों के देखे नित स्वप्न ढहा करते हैं” के माध्यम से दादा दादी, नाना नानी के प्रति अपनी काव्यात्मक भावनाएं व्यक्त की।
बिलासपुर छत्तीसगढ़ इस अवसर पर मुख्य अभ्यागत डा. विनय कुमार पाठक ने कहा कि दादा दादी नाना नानी संस्कार के जीवंत विश्वकोष है, आज जो एकल परिवार की प्रवृत्ति बढ़ी है, उससे इस संस्कार का व्यापक अनुभव ज्ञान विलुप्ति की कगार पर है, उन्होंने कहा कि दादा दादी नाना नानी से दो पीढ़ियां संस्कृति होती है, कार्यक्रम अध्यक्ष श्री सुनील दत्त मिश्रा ने कहा कि दादा दादी नाना नानी की कहानी सुने बिना किसी का जीवन परिपूर्ण नही होता है, आज जो समाज में कटुता दिखाई दे रही हैं, उसका कारण यही है बच्चो का इनसे दूर अपने आप में मगन रहना है, विशिष्ट अभ्यागत श्री एस विश्वनाथ राव ने कहा कि कहा कि घर में बड़े बुजुर्गो के आशीर्वाद से ही खुशियां रहती है, जिन्हे वृद्धाश्रमों में छोड़कर हम उन्हे नही घर की खुशियों को छोड़कर आ रहे है, कार्यक्रम का सफल संचालन बालमुकुंद श्रीवास ने एवं आभार प्रदर्शन इकाई अध्यक्ष श्री अंजनी कुमार तिवारी ने किया। कार्यक्रम में मोहन देवपुजारी, श्री भुनेश्वर चंद्राकर, चंद्रशेखर देवांगन, नीरज जोशी, डा गजेंद्र तिवारी, एवं कला अनुरागी विशेष रूप से उपस्थित थे

