Bharatmala Corridor Compensation Scam: Investigation deviated from its direction, under pressure or some other game? Sharp questions on EOW’s action!
रायपुर : भारतमाला कॉरिडोर – विकास का वादा या लूट का रास्ता? छत्तीसगढ़ में इस प्रोजेक्ट के तहत हुए करोड़ों रुपये के मुआवजा घोटाले ने जहां आम आदमी को झकझोर दिया है, वहीं अब मामले की जांच कर रही आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) की कार्रवाई पर ही गहरे सवाल उठने लगे हैं। क्या जांच सही दिशा में है, या फिर ‘ऊपर’ से आए दबाव ने इसकी रफ्तार धीमी कर दी है?
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खुद विधानसभा में इस मामले की जांच की घोषणा की थी, जिसमें राज्य सरकार के सुशासन और पारदर्शिता की ओर इशारा किया गया था। लेकिन अब तक की गई कार्रवाई से यह सवाल उठ रहा है कि क्या जांच सही दिशा में चल रही है, या फिर जांच एजेंसी राजनीतिक दबाव और प्रभावशाली तत्वों की कठपुतली बन चुकी है।
हाल ही में, ईओडब्ल्यू ने एफआईआर क्रमांक 23/04/25 दर्ज किया और उमा तिवारी, केदार तिवारी, हरमीत खनूजा और विजय जैन को गिरफ्तार किया। लेकिन यह गिरफ्तारी अजीब सवाल उठाती है, क्योंकि उगेतरा गांव, जहां इन लोगों का संबंध हैं,रायपुर-विशाखापत्तनम कॉरिडोर के हिस्से में नहीं आता। यह गांव तो आरंग-रायपुर-दुर्ग सिक्सलेन एक्सप्रेसवे के अंतर्गत आता है। ऐसे में यह पूरी गिरफ्तारी प्रक्रिया पूरी तरह से संदिग्ध नजर आती है और सवाल यह है कि जब घोटाला रायपुर-विशाखापत्तनम कॉरिडोर में हुआ है, तो कार्रवाई क्यों इस गांव पर की जा रही है?
घोटाले की असल परतें तब सामने आईं, जब अभनपुर विकासखंड के नायकबांधा गांव की भूमि पर मुआवजा वितरण की गड़बड़ी का मामला सामने आया। नायकबांधा गांव में वर्ष 1959-60 में जल संसाधन विभाग ने करीब एक हेक्टेयर भूमि जलाशय निर्माण के लिए अधिग्रहित की थी। हालांकि इस भूमि का मुआवजा किसानों को दिया गया था, लेकिन इसके बाद राजस्व विभाग से यह रिकॉर्ड अपडेट नहीं किया गया। जल संसाधन विभाग ने इस बारे में कई बार राजस्व विभाग से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। यह खामी जानबूझकर छोड़ दी गई, ताकि बाद में इस भूमि को निजी भूमि के रूप में दिखाकर मुआवजा हड़पने का रास्ता खुल सके।
जल संसाधन विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने मिलकर मिथ्या दस्तावेज तैयार किए और सरकारी भूमि पर निजी स्वामित्व का दावा पेश किया। इसके आधार पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए लाखों-करोड़ों रुपये का मुआवजा बांटा गया। कमल नारायण चतुर्वेदानी, ललित चतुर्वेदानी, मुकेश चतुर्वेदानी, ललिता बघेल, मीना बाई, उषा चतुर्वेदी, मेघराज चतुर्वेदानी और झरना चतुर्वेदी को 69.89 लाख रुपये का मुआवजा मिला। वहीं, टीकमचंद राठी, पुरुषोत्तम टावरी, दिनेश टावरी, नंदकिशोर टावरी, सावन टावरी, हेमंत टावरी और लीला देवी टावरी को 1.04 करोड़ रुपये का मुआवजा मिला। इसके अलावा पारस कुमार चोपड़ा को 59.97 लाख रुपये का मुआवजा वितरित किया गया। इन सभी को सरकारी रिकॉर्ड में बदलाव करके और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मुआवजा दिया गया।
इस घोटाले की शिकायत रायपुर कलेक्टर से की गई थी, जिसके बाद तात्कालिक अपर कलेक्टर बी.सी. साहू ने जांच शुरू की। 30 जनवरी 2023 को प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मुआवजा वितरित किया गया और सरकारी खजाने को कुल 2.34 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यह पूरी प्रक्रिया जानबूझकर की गई थी और इसमें जल संसाधन विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत थी।
सवाल तीखे हैं और जनता जवाब चाहती है।
जब जांच रिपोर्ट में सब कुछ साफ है, तो ईओडब्ल्यू की सुई अटकी क्यों है?
क्या यह जानबूझकर जांच को भटकाने की कोशिश है, ताकि असली मगरमच्छ बच निकलें? या फिर प्रभावशाली चेहरों के दबाव में जांच की आंच को धीमा किया जा रहा है?
अगर इस बार भी ‘ताकतवर’ लोग बच निकले और आम जनता सिर्फ तमाशा देखती रह गई, तो सुशासन और पारदर्शिता के सारे वादे खोखले साबित होंगे।
यह सिर्फ करोड़ों का घोटाला नहीं, जनता के भरोसे का चीरहरण है, और ईओडब्ल्यू की हर धीमी चाल इस भरोसे को और तोड़ रही है।

