* कृषक व राष्ट्रधर्म ‘विमर्श’ के आधार स्तंभ हैं – डा विनय कुमार पाठक*
बिलासपुर।राष्ट्रीय कवि संगम मंच,बिलासपुर द्वारा कृषक एवं राष्ट्रधर्म पर केंद्रित काव्य संध्या का सफल आयोजन संस्कार भवन, महामाया चौक, बिलासपुर में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि डा. विनय कुमार पाठक पूर्व अध्यक्ष राजभाषा आयोग छ.ग., अध्यक्षता आचार्य बसंत पांडेय ऋतुराज, विशिष्ठ अतिथि डा. ए. के. यदु संरक्षक राष्ट्रीय कवि संगम, डा. नीरज अग्रवाल नंदिनी वरिष्ट साहित्यकार बिलासपुर थे। कार्यक्रम की शुरुवात दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, अतिथि स्वागत पश्चात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा विनय कुमार पाठक ने अपने संबोधन में कहां कि साहित्यिक विमर्श परम्परा में नारी विमर्श, दिव्यांग विमर्श, आदिवासी विमर्श, लोक कला संस्कृति विमर्श की कड़ी में कृषक विमर्श एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो राष्ट्र धर्म को सशक्त आधार देता है। उन्होंने बताया कि बलराम और गोपाल के रुप में हमारा सनातन भारत कृषक जीवन से जुड़ा हुआ है।अत; साहित्य में निरंतर कृषक विमर्श की आवश्यकता है। इस अवसर पर अध्यक्षता की आसंदी से आचार्य बसंत कुमार पाण्डेय ‘ऋतुराज’, विशिष्ट अतिथि की आसंदी से डा ए के यादव,डा नीरज अग्रवाल नन्दनी, एस ई सी एल पर्यावरण अधिकारी के पी द्विवेदी ने राष्ट्र धर्म एवं कृषक विषय पर अपने विचार व रचनाएं प्रस्तुत किया। इस अवसर पर प्रभा पाण्डेय, रामनिहोरा राजपूत एवं सुखेंद्र श्रीवास्तव द्वारा लोक गीतों को प्रस्तुति दी गई। विषय परक इस काव्य गोष्ठी में सर्वप्रथम राजेश सोनार ने “होत बिहनिया नागर धर के जाथे गा”, आभा गुप्ता ने जो देता भूखों को निवाला”, “अन्नदाता किसानों की मैं व्यथा सुनाने आया हु”, रामनीहोरा राजपुत से “तोर हाड़ा वज्र बरोबर हे”, रजनी खनूजा ने “सावली सलोनी मुख तेरा चमके”, “है किसान भारत के”, “उमर पहा गै जांगर बोहा गै”, सुखेंद्र श्रीवास्तव ने ” चैनो अमन बहार किया”, राजेंद्र पांडेय ने ” तुम मेरी जीवन में ” , डा अर्चना शर्मा ने “जिसके बल भरता उदर हमारा” , राजेंद्र रूंगटा ने ” दुश्मन कापेंगे मेरी हुंकार से”, राकेश खरे ने “पुष्प के भी अंदर सुगंध बनके रहता”, मनोज खांडे ने “बिना मेहनत के दुनिया में”, बालमुकुंद श्रीवास ने “जो दिनकर को उठाने नित्य प्रति जाग जाता है”, डा राघवेंद्र दुबे ने ” मैं किसान बेटा रे संगी”, डा. यदु ने “ये पर पर्वत है तो है”, नीरज अग्रवाल ने ” शेरो की जननी भारत मां”, आशा चंद्राकर ने “पसीने से नहाता किसान तब खेत लहलहाता है”, पी के द्विवेदी “पथ कंटक बहुत है राष्ट्र धर्म का”, पूर्णिमा तिवारी ने ” किसान भुइया के भगवान ये” बसंत पांडेय ने कृषक रचना के माध्यम से कृषकों के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त की। कार्यक्रम का सफल संचालन पूर्णिमा तिवारी ने एवं आभार डा. राघवेंद्र दुबे ने किया। आयोजन में सन्निधि विश्वनाथ राव, महेंद्र दुबे, मीना दुबे, हर्ष दुबे विशेष रूप से उपस्थित थे


