
बिलासपुर ।डी.पी. विप्र महाविद्यालय में पं. द्वारिका प्रसाद ‘विप्र‘ की जयंती मनाई गई। जिसमें मुख्य अतिथि श्रीमती उषा तिवारी, विशिष्ट अतिथि श्री शिरीष तिवारी, डॉ. अर्चना तिवारी एवं प्राचार्य डॉ. (श्रीमती) अंजू शुक्ला उपस्थित रहीं।
डॉ. श्रीमती अंजू शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र‘ ने समर्पित भाव से छ.ग. राज्य के उत्थान के साथ-साथ महाविद्यालय को स्थापित करने में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। आप छ.ग. राज्य के स्वप्नदृष्टा के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी साहित्य के मूर्धन्य विद्धान भी थे। आपके साहित्य में राष्ट्र, समाज और उसके परिवेश स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते है। सुराज गीत, राम अऊ, केंवट संवाद आदि रचनाओं में जन जीवन की मार्मिक अनुभूतियाँ उनके साहित्य का प्रेरणास्रोत रही है। ‘कर्मण्येवाधिकास्ते मा फलेषु कदाचन‘ आपके जीवन का आदर्श रहा है। श्रीमती उषा तिवारी ने कहा कि उनका साहित्य जनमानस से ओतप्रोत होता है जिसके कारण सरल शब्दों का प्रयोग जन-जन को आत्मविभोर करता है। अपने ‘विप्र‘ की उपाधि को सार्थकता प्रदान करते हुए राष्ट्र, समाज व साहित्य के प्रति उनका पूर्ण समर्पण युवाओं को भी प्रेरित करता है। डॉ. अर्चना तिवारी ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. एम.एस. तम्बोली तथा आभार प्रदर्शन प्रो. किरण दुबे ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के डॉ. मनीष तिवारी, डॉ. एम.एल. जायसवाल, डॉ. विवेक अम्बलकर, डॉ. सुषमा शर्मा, डॉ. आभा तिवारी, प्रो. ए.श्रीराम, प्रो. तोषिमा मिश्रा, डॉ.रश्मि शर्मा, प्रो. निधिश चौबे डॉ. शिखा पहारे, प्रो. विश्वास विक्टर, डॉ. सुरुचि मिश्रा, डॉ. ऋचा हाण्डा, श्री शैलेन्द्र तिवारी, प्रदीप जायसवाल, प्रो. यूपेश कुमार, रूपेन्द्र शर्मा, श्री मोतीलाल पाटले, प्रो ईश्वर सूर्यवंशी, प्रो ब्रजेश, प्रो. ज्योति तिवारी प्रो., श्रीमती अंजलि जायसवाल, महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक, कर्मचारी, एन.एस.एस. एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्राऐं उपस्थित रहें।

