
मल्हार। विश्व संग्रहालय दिवस के अवसर पर पातालेश्वर मंदिर स्थित संग्रहालय भवन के सामने एक गोष्ठी का सफल आयोजन पातालेश्वर साहित्य समिति द्वारा किया गया, जिसमें अवकाश प्राप्त प्रधान पाठक त्रय विजय कुमार पांडे, अकत राम सिन्हा एवं शेष नारायण गुप्ता ने मल्हार के प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति पर गर्व करते हुए भारत देश के सबसे प्राचीन पाषाण मूर्ति जो भगवान चतुर्भुजी विष्णु की है जिसके सामने के पटिका में लेख अंकित है एवं जो ईसा पूर्व दूसरी सदी की है का विशेष रूप से चर्चा किए पश्चात स्कंदमाता, शेषषायी भगवान विष्णु, नटराज शिव, भगवान सूर्य, भगवान कुबेर एवं नवग्रह की मूर्तियों के बारे में चर्चा किए। वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश पांडे ने बेशकीमती ग्रेनाइट पत्थर में निर्मित मां डिंडेश्वरी का जिक्र करते हुए बताया कि 4 फीट ऊंची एवं 4 क्विंटल वजनी यह मूर्ति पाषाण कला का बेजोड़ मूर्ति है जो सोलह सिंगार से सज्जित है एवं अंजलि बद्ध मुद्रा में पद्म आसन पर बैठी हुई है भगवान भोलेनाथ को पति मान उन्हें साक्षात पाने हेतु कठिन तपस्या में लीन है और अंततः भगवान शिव देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन दिए और भगवान पातालेश्वर कल्प केदारनाथ के रूप में स्थापित हो गए। लेखक राजेश पांडे ने इसी परिसर में स्थापित हेरम्ब गणेश के साथ मल्हार के विभिन्न लोगों के घरों में स्थापित गणेश मूर्तियों के बारे में चर्चा करते हुए सभी का ध्यान इस और आकृष्ट कराया एवं बताया कि 3 से 4 फीट ऊंची यहां गणेश भगवान की 15 मूर्तियां स्थापित है जो जानकारी में है यह सभी मूर्तियां बड़े ही विलक्षण हैं।
इस अवसर पर उपस्थित सभी वक्ताओं ने मल्हार रत्न स्व. छेदीलाल पांडे को सम्मान पूर्वक याद किया।
जिनके लगातार एवं सफल प्रयास से मल्हार की महत्वपूर्ण प्राचीन मूर्तियों को संजोकर रखने हेतु एक भवन का निर्माण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग नई दिल्ली द्वारा कराया गया, इसके अतिरिक्त सन 1959 में भगवान पातालेश्वर मंदिर के ऊपर में लेंटर डाला गया तब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का क्षेत्रीय कार्यालय हैदराबाद में था। पश्चात सन 1980 से भीम-कीचक देऊर मंदिर की मलबा सफाई करने के पश्चात वर्तमान देऊर मंदिर लोगों के सामने आया और मल्हार के प्राचीन इतिहास में एक और कड़ी जुड़ गई। स्व. पांडे जी के प्रयास से ही सागर विश्व विद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग द्वारा सन 1975 से 1978 तक मल्हार में उत्खनन का कार्य टैगोर प्रोफेसर स्व. के.डी. बाजपेयी के निर्देशन में स्व. डा. श्याम कुमार पांडे, डा. विवेकदत्त झा एवं डा. कृष्ण कुमार त्रिपाठी के सहयोग से संपन्न हुआ और हमारे प्रदेश के साथ ही देश के इतिहास में नई-नई जानकारियां प्राप्त हुई और मल्हार का नाम पूरे देश में विख्यात हो गया।
इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों ने मल्हार के मूर्तियों एवं इतिहास को संजोने, सवारने एवं अछुंड बनाकर रखने का संकल्प लिया। गोष्ठी में संजीव पांडे रविंद्र वैष्णव अमिताभ चतुर्वेदी करुणेश नापित आचार्य संतोष केवट संजय दुबे जगदीश तिवारी शिवेश तिवारी सी.एल. दुबे, नंदकिशोर राजन, शंकर कैवर्त के साथ अन्य उपस्थित थे।

