“Questions raised on IFS officer Arun Prasad: Congress’s favourite, still sitting on a lucrative post in BJP government!”
रायपुर | छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ‘सुशासन तिहार’ मना रही है, लेकिन राज्य के एक अहम विभाग – पर्यावरण संरक्षण मंडल में जमे एक अफसर पर उठ रहे सवाल सरकार के दावों पर गंभीर संदेह खड़ा कर रहे हैं।

2006 बैच के भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी अरुण प्रसाद लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण मंडल में सदस्य सचिव जैसे प्रभावशाली और मलाईदार पद पर जमे हुए हैं। हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस शासन के दौरान एक कद्दावर मंत्री के बेहद करीबी माने जाने वाले इस अफसर को भाजपा सरकार आने के बाद भी अब तक नहीं बदला गया है।
कांग्रेस राज में ‘खास’, चुनाव में निभाई सक्रिय भूमिका..
सूत्रों के मुताबिक, अरुण प्रसाद की इस पोस्टिंग के पीछे कांग्रेस सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री की सीधी सिफारिश थी। इतना ही नहीं, विधानसभा चुनाव के दौरान वे कथित रूप से मंत्री के गृहग्राम में जाकर प्रचार और चुनावी रणनीति में भी शामिल रहे। अगर भाजपा चाहे तो इसकी आधिकारिक जांच कर सकती है।
चौंकाने वाली बात ये है कि ये वही मंत्री हैं जिन्हें भाजपा के सबसे बड़े “विफलता प्रतीक” के तौर पर प्रचारित करती रही है। इसके बावजूद उनके करीबी अफसर आज भी भाजपा सरकार में उसी कुर्सी पर बने हुए हैं।
अब तक क्यों नहीं बदले गए अफसर? किसके इशारे पर हो रहा संरक्षण?
जब भाजपा सरकार बनी, तब कई विभागों में व्यापक फेरबदल किए गए। कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले अफसरों को जिम्मेदार पदों से हटाया गया। लेकिन अरुण प्रसाद अपवाद साबित हुए। अब सवाल उठ रहा है — किसके संरक्षण में ये अफसर अब भी पद पर बने हुए हैं? क्या कोई मौजूदा मंत्री पर्दे के पीछे से इन्हें बचा रहा है?
प्रदूषण बढ़ा, कार्रवाई घटी: मंडल की निष्क्रियता पर सवाल..

रायपुर अब देश के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जा रहा है। जबकि पर्यावरण संरक्षण मंडल का काम है इंडस्ट्री और खनन संस्थानों की सख़्त निगरानी और उल्लंघनों पर कार्रवाई। मगर आरोप हैं कि पर्यावरण मानकों की अनदेखी के मामलों में भारी लेन-देन कर उन्हें दबा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में जब जुर्माने और सख्ती की जरूरत थी, वहाँ कथित समझौतों और ‘समंजन नीति’ ने पर्यावरण के हालात को और बदतर बना दिया।

भाजपा सरकार की नियत पर उठ रहे सवाल..
विष्णुदेव साय सरकार पारदर्शिता और प्रशासनिक शुचिता की बात करती है, मगर जब बात इस अधिकारी की आती है तो सरकार की चुप्पी कई तरह के संदेह को जन्म देती है।
क्या भाजपा सरकार वाकई सभी विभागों में निष्पक्ष प्रशासन चाहती है? क्या अरुण प्रसाद की नियुक्ति को लेकर कोई ‘राजनीतिक सौदा’ हुआ है? अगर नहीं, तो इन्हें अब तक हटाया क्यों नहीं गया?
जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक जनता यह मानने को तैयार नहीं होगी कि सरकार सभी के लिए एक जैसा मापदंड रखती है। पर्यावरण संरक्षण मंडल की यह कुर्सी सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि सत्ता और संरक्षण की गूढ़ राजनीति का प्रतीक बन चुकी है।
छत्तीसगढ़ की जनता अब यह जानना चाहती है — “वो कौन है जो भूतपूर्व मंत्री के इस करीबी अफसर को आज भी बचा रहा है?” और “क्या यह सुशासन है या अंदरखाने का कोई सियासी समंजन?”

