1 जनवरी केवल कलेंडर परिवर्तन तिथि चैत्र प्रतिपदा से ही नव वर्ष वैज्ञानिक – ललित

बिलासपुर । 1 जनवरी के बजाय युगाब्द 5128, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नववर्ष मानना तार्किक कहते हुए ललित अग्रवाल ने बताया कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है और पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने के लिए जितना समय लगता है वह एक वर्ष कहलाता है। अर्थात् नव-वर्ष दिवस उस दिन को कहेंगे जहां से हम पृथ्वी की परिक्रमा का प्रारंभ मानेंगे । वैसे तो यह कोई भी दिन हो सकता है किन्तु अधिक उचित होगा यदि इस दिन का निर्धारण एक तार्किक आधार पर किया जाए।

परीक्षण करने से स्पष्ट है कि पृथ्वी की इस परिक्रमा के दो परिणाम है। पहला इस परिक्रमा के कारण दिन और रात की अवधि बदलती रहती है और दूसरा इस परिक्रमा के कारण ऋतुओं का परिवर्तन होता है।

पृथ्वी के इस परिक्रमण में 21 मार्च व 21 सितंबर दो अवसर ऐसे आते हैं जब दिन और रात समान हो जाते हैं और 21 जून व 21 दिसम्बर दो अवसर ऐसे आते हैं जब दिन और रात की अवधि में अंतर सर्वाधिक होता है। तो अन्य किसी दिन के तुलना में इन चारों में से किसी एक दिन को इस परिक्रमा का प्रारंभ अर्थात नव वर्ष दिवस माना जाना ही तार्किक होगा।

इन चारों में से कौन सा दिन मानना अधिक तार्किक होगा, तो ज्ञात हुआ कि वे दो दिन, जब दिन रात समान होते हैं, उनमें से एक दिन हमें वर्ष का प्रारंभ मानना चाहिए। तो इन दोनों दिनों में क्या अंतर है इसे देखने पर ध्यान आया कि एक ऐसे अवसर के पश्चात दिन बड़े होते हैं और दूसरे ऐसे अवसर के पश्चात रातें बड़ी होने लगती हैं। तो सामान्य मनोभाव कहता है कि जिसके पश्चात दिन बड़े होते हैं, उसी दिन को हमें वर्षारंभ मानना चाहिए। तो ऐसा दिन तो 21 या 22 मार्च पड़ता है।इससे एक बात और स्पष्ट होती है कि मार्च का महीना वसंत का महीना है जब प्रकृति नव सृजन करती है तो ऋतुओं के आधार पर भी यह दिन वर्षारंभ मानने के लिए सही प्रतीत होता है।

मार्च का अर्थ होता है आगे बढ़ना। मार्च को पहला महीना मानें तो सितंबर आता है सातवां महीना। सेप्टम्बर में सेप्टा का अर्थ भी सात होता है। अक्टूबर होता है आठवां महीना ओक्टोपास आठ भुजाओं वाला होता है। नवंबर में नोवा का अर्थ नौ होता है, दिसंबर में डेका का अर्थ दस होता है। तो यह भी तार्किक है।

यदि हम कहीं कुछ वितरण करते हैं तो जो कम अधिक होता है वह अंत वाले के भाग में ही आता है तो जब वर्ष के महीनों को दिनों का वितरण किया गया तो अंत में बचे 28/29 दिन, जब की सभी महीने तो 30 या 31 दिन के बने थे, तो ये 28 दिन फरवरी को दिए गए और जब लीप ईयर आता है तो अंत में बचते हैं 29 दिन तो वह एक अतिरिक्त दिन भी फरवरी को दिया जाता है। अर्थात पहले कभी फरवरी वर्ष का अंतिम मास होता था।

आगे पता लगाया कि यह जनवरी कब से प्रारंभ हो गया वर्षारंभ का दिन मनाना तो ध्यान आया की 1 जनवरी वस्तुतः यीशु मसीह का खतना दिवस होने के कारण इसे ईस्वी सन् का प्रथम दिन कह दिया गया। तो पाया कि किसी भी तरह से एक धार्मिक कारण के अतिरिक्त कोई तर्क नहीं था कि हम 1 जनवरी को वर्ष का प्रारम्भ माने।

इसके स्थान पर शक संवत के अनुसार 21 या 22 मार्च को या चंद्र पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जो 21- 22 मार्च के आसपास ही पड़ती है, वर्ष आरंभ मानना अधिक तार्किक है।

इसीलिए ही 21 जून सबसे बड़े दिन को विश्व योग दिवस व 21 दिसम्बर सबसे बड़ी रात को ध्यान दिवस हेतु उपयुक्त माना गया है।इस अनुसार 1 जनवरी मात्र ईसाइयों के वर्ष का प्रारंभ हुआ था इसे वर्षारंभ मानने का हम हिंदुओं के पास कोई कारण नहीं है। वरन हमें अपने पूर्वजों द्वारा विश्व के लिए निर्धारित नव वर्ष युगाब्द 5128, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही पूर्णतया विज्ञान सम्मत हैं।

आम जनता के हित मे इस सत्य से अवगत कराया जा रहा हैं ताकि वे इस दिन नव वर्ष मनाना चाहिए या नहीं इस पर उचित निर्णय ले सकें।

ललित अग्रवाल
हिंदु दैनंदिनी