
Congress’s internal conflict: Is the voter’s trust being betrayed?

बिलासपुर : भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, जिसने देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, आजकल अपने ही नेताओं के बीच खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप के कारण सुर्खियों में रहती है। हर चुनाव के बाद पार्टी के भीतर गुटबाज़ी, भीतरघात और टिकट बेचने के आरोप सामने आते हैं। यह घटनाएं न केवल पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि कांग्रेस के उन समर्पित मतदाताओं को भी निराश करती हैं, जो हर बार पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में अपना वोट डालते हैं।
गुटबाज़ी और भीतरघात: हार की असली वजह?
कांग्रेस की हार का ठीकरा अक्सर ईवीएम, भाजपा की रणनीति या अन्य कारकों पर फोड़ा जाता है, लेकिन सच यह है कि पार्टी के भीतर खुद की लड़ाई ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। हर चुनाव से पहले टिकट को लेकर गुटबाज़ी चरम पर होती है। किसी नेता का टिकट कटता है, तो वह खुले तौर पर या पर्दे के पीछे रहकर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ काम करने लगता है। कई बार तो आरोप लगते हैं कि कुछ कांग्रेसी नेता अंदरूनी तौर पर भाजपा के पक्ष में काम करते हैं, जिससे कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान होता है।
मतदाता की निराशा: क्या उसे मिल रहा है न्याय?
कांग्रेस का समर्थक मतदाता हर बार पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद में मतदान करता है, लेकिन जब भीतरघात और गुटबाज़ी के कारण कांग्रेस का प्रत्याशी हार जाता है, तो वही मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। उसे यह समझ नहीं आता कि उसने जिस विचारधारा और पार्टी को समर्थन दिया, उसी के नेता आपस में लड़कर पार्टी को कमजोर क्यों कर रहे हैं? क्या यह मतदाता के विश्वास के साथ धोखा नहीं है?
कांग्रेस को चाहिए आत्ममंथन..
अगर कांग्रेस को फिर से मजबूत होना है, तो उसे अपने भीतर फैले गुटबाज़ी और अवसरवादी राजनीति को खत्म करना होगा। पार्टी को सिर्फ चुनावी राजनीति से ऊपर उठकर एक स्पष्ट विचारधारा और मजबूत संगठन के साथ काम करना होगा। टिकट वितरण में पारदर्शिता लानी होगी, भीतरघात करने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी होगी और जमीनी कार्यकर्ताओं को महत्व देना होगा।
कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत उसका मतदाता है, लेकिन यदि पार्टी अपने ही नेताओं की आपसी खींचतान और भीतरघात से उबर नहीं पाती, तो इसका सीधा नुकसान उसी मतदाता को होगा जो हर बार बदलाव की उम्मीद में कांग्रेस को वोट देता है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि अगर वह अपने समर्थकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती, तो भविष्य में उसके लिए और भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। अब वक्त आ गया है कि कांग्रेस सिर्फ चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक राजनीति को सुधारने की रणनीति भी बनाए, वरना मतदाता का भरोसा पूरी तरह टूट सकता है।

