अरपा किनारे पेड़ों की कब्रगाह पर अब भी चुप्पी : रेंजर के बयान के बाद राजस्व विभाग ने साधी चुप्पी कब्जाधारियों के हौसले बुलंद..

बिलासपुर। कोटा ब्लॉक के ग्राम बरर में अरपा नदी किनारे दस एकड़ में फैले जंगल को उजाड़ने का मामला अब सरकारी फाइलों के बीच दम तोड़ता नजर आ रहा है। तीन दिन बीत जाने के बाद भी हरियाली के हत्यारों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। रतनपुर रेंजर देव सिंह ठाकुर के उस बयान ने मामले को और पेचीदा कर दिया है जिसमें उन्होंने साफ कह दिया कि जमीन वन विभाग की नहीं बल्कि राजस्व की है। इस बयान के बाद अब सबकी नजरें राजस्व विभाग की सुस्ती पर टिकी हैं क्योंकि विभाग की चुप्पी ने कब्जाधारियों को खुली छूट दे दी है।

तीन दिन से फाइलों में घूम रही जिम्मेदारी..

अरपा नदी की गोद में बसे इस क्षेत्र में जेसीबी चलाकर पेड़ों को जिस बेरहमी से उखाड़ा गया है उसकी गूंज अब तक प्रशासनिक गलियारों में नहीं पहुंची है। रेंजर देव सिंह ठाकुर ने बताया कि यह क्षेत्र वन सीमा के बाहर राजस्व विभाग के अधीन आता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक वानिकी के तहत यहां साल 2012-13 में पौधरोपण कर इसे पंचायत को देखरेख के लिए दे दिया गया था। रेंजर के इस पल्ला झाड़ू रवैये के बाद अब गेंद राजस्व विभाग और पंचायत के पाले में है लेकिन वहां से अब तक कोई भी अधिकारी मौका मुआयना करने नहीं पहुंचा है।

खेत बनाने की जिद में बलि चढ़ गए हजारों पेड़..

ग्रामीणों का गुस्सा अब सातवें आसमान पर है। लोगों का कहना है कि तीन दिनों से शोर मचने के बाद भी जेसीबी चलाने वाले रसूखदारों पर कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। जिस जमीन को समतल कर निजी खेत में बदला गया है वहां कभी हजारों पेड़ लहलहाते थे। ग्रामीणों ने बताया कि साल 2012-13 की मेहनत को कुछ ही घंटों में मिट्टी में मिला दिया गया। प्रशासन की यह सुस्ती इशारा कर रही है कि उसे न तो पर्यावरण की चिंता है और न ही नदी के अस्तित्व की।

विज्ञापनों की हरियाली और जमीन में रेगिस्तान..

यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है। सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर पौधों के संरक्षण का ढिंढोरा पीटती है लेकिन जब रसूखदार लोग चलते हुए पेड़ों पर बुलडोजर चलाते हैं तो विभाग सीमा विवाद का बहाना बनाने लगते हैं। रेंजर के बयान ने यह तो साफ कर दिया कि जमीन उनकी नहीं है लेकिन क्या पर्यावरण की रक्षा भी सिर्फ सीमाओं में बंधी है?

राजस्व विभाग और पंचायत की यह चुप्पी बताती है कि शायद वे भी इस खेल में मूकदर्शक बने रहना चाहते हैं। अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो अरपा किनारे की बची-कुची हरियाली भी निजी खेतों में तब्दील हो जाएगी।