छत्तीसगढ़ : 25 साल में आंगनबाड़ी केंद्रों में भारी वृद्धि, कुपोषण 57% से घटकर 9% पर..

बिलासपुर।छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में राज्य स्थापना के 25वें वर्ष 2025 के मौके पर महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं ने पोषण, सुरक्षा और महिलाओं के स्वावलंबन को नई राह दी है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने जानकारी दी है कि राज्य गठन से पहले जिले में सिर्फ 780 मुख्य आंगनबाड़ी केंद्र थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 1,925 हो गई है। सबसे बड़ी उपलब्धि कुपोषण उन्मूलन में मिली है, जहां 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में कुपोषण दर 2003 में 57.80 प्रतिशत से घटकर अब 9.68 प्रतिशत रह गई है, जो 48.2 प्रतिशत की ऐतिहासिक कमी है।

आंगनबाड़ी नेटवर्क का अभूतपूर्व विस्तार..

विभाग की समर्पित कार्यप्रणाली का असर आंगनबाड़ी नेटवर्क के विस्तार में साफ दिखाई देता है। पहले जहां सिर्फ 212 आंगनबाड़ी भवन स्वीकृत थे, वहीं अब 1,661 भवनों को मंजूरी मिली है, जिसका मतलब है कि 1,449 नए भवन बनकर तैयार हुए हैं। इस विस्तार से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पोषण, बाल शिक्षा और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती मिली है।

पोषण और आर्थिक सहायता : आँकड़ों में प्रगति..

पूरक पोषण आहार कार्यक्रम : वर्ष 2002 में 82,285 हितग्राही लाभ ले रहे थे, जो अब बढ़कर 1 लाख 56 हजार 678 हो गई है।

मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना (2005 से) : अब तक 5,728 कन्याओं का विवाह संपन्न कराया गया, जिस पर शासन ने 5 करोड़ 50 लाख 63 हजार 502 रुपये खर्च किए हैं।

छत्तीसगढ़ महिला कोष योजना : 2,022 स्वयं सहायता समूहों को 6 करोड़ 12 लाख 68 हजार रुपये की ऋण सहायता मिली है, जिससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का ठोस आधार मिला है।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (2017 से) : 72 हजार 125 माताओं को 35.15 करोड़ रुपये की राशि से लाभान्वित किया गया है।

महतारी वंदन योजना : 4 लाख से अधिक माताओं को 78.73 करोड़ रुपये की राशि दी जा चुकी है। इन योजनाओं से गर्भवती और धात्री महिलाओं को पोषण और आर्थिक सहयोग मिला है, जिससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है।

महिलाओं की सुरक्षा और पुनर्वास..

महिलाओं को संकट की स्थिति में तत्काल सहायता और कानूनी परामर्श देने के लिए भी विभाग ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

सखी वन स्टॉप सेंटर योजना (2015 से) : 1,841 प्रकरण मिले, जिनमें से 1,788 मामलों का सफल निराकरण किया गया है।

नवा बिहान योजना : 2,365 पीड़ित महिलाओं को संरक्षण, परामर्श और पुनर्वास की सुविधाएँ दी गई हैं, जिससे उन्हें सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन की नई दिशा मिली है।