बिलासपुर छत्तीसगढ़ : साहित्य समाज का दर्पण होता है । कलम की शक्ति वही पहचान सकता है जिसे इसकी परख हो या जो न्यायालय की प्रक्रिया से गुजर रहा है । साहित्य आजादी के समय प्रचार-प्रसार का प्रमुख श्रोत रहा है और आज है, कल भी रहेगा । ‘मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं है’ मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्ति इसलिए भी सही क्योंकि जहां पीड़ा है, दर्द है, कविता-कहानी वहीं से शुरू हो जाती है। साहित्य मनुष्य को संवेदनशील बनाता है, हमारी मन की संकीर्णता दूर करता है। जिन्दगी के द्वंद्वों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति ही साहित्य है। इसी को आज चरितार्थ करता है साहित्यकार /कवि राम रतन श्रीवास ‘राधे राधे’ जो कलम को अपनी सफलता और ताकत मानते है। ‘राधे राधे’ को अभी तक शतक सम्मान मिल चुका है। इसी कड़ी में कवि लोक साहित्य परिषद के तत्वावधान में रेलवे एन. ई. इन्स्टिट्यूट बिलासपुर के सभागृह में भव्य अखिल भारतीय स्तर पर देश भर के 108 साहित्यकारों का सम्मान समारोह भव्यता के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम अतिथियों के कर कमलों से दीप प्रज्ज्वलित कर, मांँ सरस्वती की वंदना से प्रारंभ हुआ। कुछ समय पहले 31 अक्टूबर 2023 को छत्तीसगढ़ के पहरेदार समाचार पत्र के द्वारा ‘राधे राधे’ को ‘छत्तीसगढ़ रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया गया था । इस सम्मान समारोह में ‘राधे राधे’ को उनके उल्लेखनीय साहित्यिक अवदान (निर्णायक) के लिए ‘कवि लोक साहित्य साधक सम्मान’ स्व. श्याम देवी एवं स्व. भागीरथी पैगवार की स्मृति में सुरेश पैगवार एवं अतिथियों के कर कमलों से सम्मानित किया गया।
राम रतन श्रीवास ने बताया की यह पहला अवसर है जब नाई, श्रीवास, सेन, सविता आदि के आदर्श रहे चक्रवर्ती सम्राट महापद्म नंद सम्मान की घोषणा अखिल भारतीय स्तर पर कवि लोक साहित्य परिषद के तत्वावधान में किया गया था। इस सम्मान के लिए पुस्तक के रूप में प्रविष्टियां आमंत्रित की गई थी, जिसे निर्णायक मंडल ने पद्म श्री रविन्द्र शर्मा उत्तर प्रदेश को उनके कृति ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल युवा वर्ग एवं महिला सशक्तिकरण लेख’ संग्रह के लिए स्वर्गीय बिसाहू राम श्रीवास एवं स्वर्गीय शांति बाई श्रीवास की स्मृति में राधा रमण श्रीवास, राम रतन श्रीवास ‘राधे राधे’ के द्वारा अतिथियों के समक्ष घोषणा कर , स्मृति चिन्ह, श्री फल, शाल, एवं प्रशस्ति पत्र से उर्वशी को पद्मश्री रविन्द्र शर्मा के प्रतिनिधि स्वरूप मानकर यह सम्मान से सम्मानित किया गया। स्वस्थ कारणों के कारण पद्म श्री रविन्द्र शर्मा इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके लेकिन इसके लिए उन्होंने शुभ कामनाएं प्रेषित किया है। इससे समस्त समाज में हर्ष व्याप्त है। हमारे संवाददाता को बताते हुए राधा रमण श्रीवास (प्रभारी प्राचार्य हाई स्कूल सरभोंका) ने कहा की हमारे स्वर्गीय माता-पिता को श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित है। उनके संस्कार ही है जो हमें नई उर्जा और प्रेरणा मिलती है, साथ ही इससे समाज को एक नई दिशा के लिए मील का पत्थर साबित होगा। राम रतन श्रीवास ‘राधे राधे’ ने इसे समाज के लिए ऐतिहासिक एवं गौरवशाली बताते हुए कहा की माता-पिता दोनों धार्मिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए सदैव तत्पर रहते थे । आज भी याद है जब पिताजी अगहन मास के प्रति गुरुवार को माँ लक्ष्मी पूजा के लिए विशाल चावल के बने रेहन से सुसज्जित चौक घर,-घर में जाकर बनाया करते थे इसके लिए लोगों में उत्सुकता और प्रसन्नता देखते ही बनता था। श्रीमद्भागवत, गीता, पुराण, रामायण, सुख सागर, वेद,आदि के ज्ञाता थे। दोनों सहजता के प्रति रूप थे। इसके साथ ही विश्व जन कल्याण के लिए सदैव आदर्श के रूप में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों का सारगर्भीत उल्लेख किया है।
कार्यक्रम सात सत्रों में आयोजित किया गया जिसमें संस्था के अध्यक्ष सुजेश कुमार शर्मा के द्वारा कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मीर अली मीर, अध्यक्ष सतीश जायसवाल तथा मुख्य अतिथि दिवाकर मुक्तिबोध ने अपना वक्तव्य दिया। इसके पूर्व निर्णायकों में डॉ. परदेशी राम वर्मा, डॉ. देवधर महंत, राघवेन्द्र दुबे, राजेन्द्र मौर्य, देवांशु पाल तथा शाद बिलासपुरी के द्वारा वक्तव्य दिया गया। मंच संचालन राकेश श्रीवास ‘पथिक’, गुलशन खम्हारी ‘प्रद्युम्न’ एवं सोमप्रभा तिवारी ‘नूर’ ने बेहतरीन अंदाज में संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम का संचालन संस्था के कोषाध्यक्ष राम रतन श्रीवास ‘राधे राधे’ एवं सुरेश कुमार पैगवार के द्वारा किया गया। अंत में सभी अतिथियों, साहित्यकारों एवं दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए, धन्यवाद ज्ञापित संस्था के सचिव नादिर अहमद ख़ान ने किया।


