
बिलासपुर। अन्न और मन का आपस में घनिष्ठ संबंध है तभी तो कहा जाता है, जैसा खाएं अन्न, वैसा बने मन। अन्न के प्रभाव से ही मन की सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है। प्राचीन काल से ही आपसी रिश्तों में घनिष्ठता और प्रेम बढ़ाने के लिए लोग रिश्तेदारों और मित्रों को अपने घर खाने पर आमंत्रित करते आए हैं और यह परंपरा आज भी निभाई जाती है। परन्तु अभी लोगो की जीवनशैली पूर्णतः बदल गई है और भोजन से सात्विकता समाप्त हो चुकी है।
उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन की संचालिका बीके स्वाति दीदी ने विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के अवसर पर कहीं। दीदी ने आगे कहा कि गुस्से से अगर खाना बनाया गया है उसे सात्विक अन्न नही कहेंगे। इसलिए खाना बनाने वालों को कभी भी नाराज, परेशान स्थिति में खाना नही बनाना चाहिए और कभी भी जो खाना बनाते है उनको डांटना भी नहीं चाहिए क्योंकि वो आपके ही खाने में गुस्से वाली वाइब्रेशन मिला के आपको ही एक घंटे में खिलाने वाले है। ये ध्यान में रखने वाली अत्यन्त ही महत्वपूर्ण बात है। किसी को डांट दो, गुस्सा कर दो और बोलो जाके खाना बनाओ तो भोजन तो हाथ बना रहा है पर अन्दर मन तो लगातार खिन्न है। वह सारे वाइब्रेशन खाने के अंदर जा रहे है। दीदी ने बताया भोजन भी तीन प्रकार का होता है- एक जो हम होटल में खाते है दूसरा जो घर में माँ बनाती है और तीसरा जो हम मंदिर और गुरूद्वारे में खाते है तीनो के वाइब्रेशन अलग अलग होते हैं । जो होटल में खाना बनाते है उनकी वृत्ति होती है कि आप खाओ और हम कमायें। इसलिए जो ज्यादा बाहर खाता है उसकी वृति धन कमाने के अलावा कुछ और सोच नहीं सकती है क्यूंकि वो खाना ही वही खा रहा है। घर में जो माँ खाना बनाती है वो बड़े प्यार से खाना बनाती है पर घर में आजकल नौकर ही भोजन बनाता है। वो जो खाना बना रहे है वो भी इसी सोच से कि आप खाओ हम कमाए। एक बच्चा अपनी माँ को बोले कि एक रोटी और खानी है तो माँ का चेहरा ही खिल जाता है। कितनी प्यार से वो एक और रोटी बनाएगी। उस रोटी में बहुत ज्यादा प्यार भर देती है। अगर आप अपने नौकर को बोलो एक रोटी और खानी है तो वो सोचेगा रोज दो रोटी खाते है, आज एक और चाहिए। आटा भी ख़त्म हो गया अब और आटा गुंथना पड़ेगा एक रोटी के लिए मुसीबत। ऐसी रोटी नही खानी है। ऐसी रोटी खाने से ना खाना ही भला।
तीसरा जो मंदिर और गुरूद्वारे में खाना बनता है प्रसाद बनता है वो परमात्मा को याद करके बनाया जाता है। हम अपने घर में ही परमात्मा की याद में प्रसाद बनाना शुरू कर दें। इसके लिए घर, रसोई को साफ कर शांत मन से रसोई में अच्छे गीत, भजन-कीर्तन चलाये और परमात्मा को याद करते हुए खाना बनाये। परमात्मा को कहे इस खाने में बहुत ताकत भर दो! शांति भर दो! ताकि सभी का मन एकदम शांत हो। तीन महीने का प्रयोग करके देखे कि सात्विक अन्न खाने से अपने आप को एक बदलाव महसूस होने लगेगा क्योंकि जैसा अन्न वैसा मन। सात्विक अन्न सिर्फ शाकाहारी भोजन नही बल्कि परमात्मा की याद में बनाया गया भोजन है।

