बिलासपुर।छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश से नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया गया जिसमें दूरस्थ अंचल और शहरी क्षेत्र के पीड़ित पक्ष कारों को परस्पर सहमति से त्वरित न्याय प्रदान करने का प्रयास किया गया। न्याय मित्रों के अथक प्रयास से टूट टे परिवारों को जोड़ा गया और टूटने से बचाया गया आज के नेशनल लोक अदालत में दांपत्य पुनर्स्थापना , संरक्षक एवं प्रतिपल्य अधिनियम धरण पोषण एवं पारिवारिक समस्याओं पर आधारित विवादों को लेकर मामले समाधान हेतु न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे ।जिसमें कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रमाशंकर प्रसाद के न्यायालय में 128 प्रकरण ,अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश श्याम लाल नवर‘ के न्यायालय में 68 प्रकरण एवं द्बितीय अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश निरंजन लाल चौहान के न्यायालय में 18 प्रकरण निराकृत किया गया ।कुटुंब न्यायालय बिलासपुर में कुल 214 प्रकरणों का परस्पर सहमति से राजीनामा आधार पर निराकरण किया गयावरिष्ठ नागरिक माता-पिता को पुत्रों से भरण पोषण दिलाया गया एवं अन्य लोन की राशि देने निर्देशित किया गया।
प्रधान न्यायाधीश रमाशंकर प्रसाद की अदालत में एक ऐसा प्रकरण भी आया जिसमें जूना बिलासपुर निवासी वरिष्ठ नागरिक माता-पिता की ओर से भरण-पोषण का प्रकरण अपने पुत्रों के विरुद्ध वस्तुत किया गया था जिसमें यह आदेशित किया गया कि 6:००० रूपये पुत्र अपने माता-पिता को प्रत्येक मांह अदा करने तथा दूसरा पुत्र भी 6,००० रूपये अपने माता-पिता को अदा करने का आदेश दिया गया ता था माता-पिता द्बारा लिया गया लोन बड़ा पुत्र एवं छोटे पुत्र दोनों मिलकर पटायेंगे। मकान बिकी हो जाने पर लोन की पटाई हुई मूल रकम दोनों पुत्र पहले वापस प्राप्त करेंगे उसके बाद अन्य रिश्तेदारों ने ब टवारा के साथ दोनों पुत्रों का भी बराबर का अधिकार सुरक्षित रहेगा। दोनों पक्षों ने और माता-पिता ने हर्ष प्रकट किया तथा दोनों माता-पिता अपने बड़े पुत्र के साथ रहना चाहते हैं और वह रखना चाहता है इसलिए वह अपनी इच्छानुसार बड़े पुत्र के साथ रहेंगे। इस तरह भरण पोषण के मामलों में पीडितों को भरण पोषण की राशि का अवार्ड पारित किया गया
तथा कई परिवारों को साथ रहने के लिए आपसी सहमति के आधार पर जोड़ा गया।
आदिवासी परिवार को टूटने से बचाया।
आज की नेशनल लोक अदालत में अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश श्री श्यामलाल नवर‘ की अदालत में कोटा क्षेत्र का ऐसा मामला भी प्रस्तुत हुआ जिसमें दोनों पति-पत्नी आदिवासी समाज के थे और पति शिक्षक था तथा पत्नी आश्रम के साधु के बहकावे में आकर पति पर शक कर रही थी। उनके दो पुत्र भी है। दोनों को न्यायमित्र अब्दुल सलीम कुरैशी ने समझाईश दिया तथा साथ में रहने के लिए वे राजी हो गए न्यायाधीश श्यामलाल नवर‘ जी ने दोनों पक्षों को काउसलिग कर परिवार बिखरने से बचाया। उपरोक्त नेशनल लोक अदालत में परस्पर सहमति से परामर्शदाता एवं न्यायमित्रों का
विशेष योगदान रहा है। सभी निराकृत प्रकरण आपसी रजामंदी से कोई जीता नहीं और न ही कोई हारा के
आधार पर पारिवारिक हित में निराकृत किया गया।


