एरमसाही स्कूल की अनूठी पहल-भोजली के माध्यम से बच्चों को प्रकृति से जोड़ा गया।
जयरामनगर:- छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में प्रकृति से प्रेम,प्रकृति से जुड़ाव और प्रकृति का संरक्षण संवर्धन रहा है।पर्यावरण के प्रति जागरूकता और अपनी छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति धरोहर को बनाए रखने के उद्देश्य के साथ शा उ मा विद्यालय एरमसाही के बच्चों ने स्कूल में भोजली बोकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर किये।प्राचार्य आई पी सोनवानी हमेशा नवाचार के पक्ष में रहते हैं,अपने स्कूल के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए लगातार स्कूल में सार्थक आयोजन करते रहते हैं।व्याख्याता रामेश्वर गुप्ता के कुशल निर्देशन में बच्चों ने नागपंचमी के दिन बांस के टोकनी में खाद मिट्टी भरकर तिल जौ उड़द बोए, अंधेरे कमरे में रखकर भोजली का सेवा किया गया।हल्दी पानी छिड़ककर उसे पोषित किया गया।शनिवार 02 सितंबर को प्रातः9 बजे स्कूल परिसर में भोजली को सजा संवारकर पूजा अर्चना किया गया।इस अवसर पर बच्चों ने बेहतरीन भोजली गीत भी गाये।देबी गङ्गा देबी गंगा के गीत और जयकारों से स्कूल परिसर गुंजित हो उठा।पूजा अर्चना के पश्चात जुलूस के रूप में बाजे गाजे,मांदर मंजीरा झांझ झुमकी आदि के साथ गाते बजाते पूरे स्कूल के बच्चे और शिक्षक गण भोजली विसर्जन करने तालाब गये जहां भोजली विसर्जन के पश्चात बच्चों ने आपस मे भोजली मितान और गिंया बदकर इस पवित्र परंपरा को जीवित रखे।भोजली देकर सभी गुरुजनों से आशीर्वाद लेकर और नारियल इलायची दाना का प्रसाद लेकर सभी बच्चे खुशी खुशी अपने घर गये।कार्यक्रम को सफल बनाने में स्कूल के व्याख्याता लक्ष्मीकांत साहू,गौरीशंकर चंद्राकर, राजेंद्र यादव, सहेतर बंजारे,रोशन कुर्रे, तिलोचन देवांगन, अनिता भारती,सोनाली वर्मा,मिथिला साहू,कल्पना राठौर, जयप्रकाश राज,रामनाथ नागेश,भागवत और संतोषी यादव का विशेष सहयोग मिला।


