
बिलासपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी उपनगर इकाई ने सरस्वती शिशु मंदिर राजकिशोरनगर से पथ संचलन निकाला।
सामाजिक जनजागरण आत्मबोध के गीत गाते हुए स्वयंसेवकों ने हिन्दू समाज को आत्मविस्मृति से बाहर आकर स्वबोध को जागृत करने का संदेश दिया।
ध्वज वंदना शस्त्र पूजन के बाद डॉ. उल्हास वारे ने संघ के गौरवशाली इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि संघ का उद्देश्य व्यक्ति का निर्माण करना हैं। रोज एक घंटा अपने गुरु के सानिध्य में रहते हुए अपने को परिष्कृत करने का कार्य करना चाहिए स्वयंसेवक का आचार विचार व्यवहार आत्मीय और विश्व बंधुत्व की भावना वाला होना चाहिए। ऐसे स्वयंसेवकों को देखने के बाद समाज प्रेरित होकर अपने आप संगठित होना लगेगा। संगठन की धारा बनाकर सभी दिशा में बहना है। उन्होंने नदी और झरना में अंतर बताते हुए स्वयंसेवकों से झरना की तरह बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि झरना सदिश राशि की तरह हैं। किस दिशा में जाना चाहिए। यह हमें मालूम होना चाहिए।
उन्होंने विजयादशमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर महाराणा प्रताप के जीवन से कहानी जुड़ी कहानी भी सुनाई। उन्होंने शस्त्र पूजन क्यों और किस कारण से करना चाहिए । इसको लेकर भी पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ी हुई कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि हम सभी को अपने व्यवहार और चरित्र में देवी शक्ति को बढ़ाना चाहिए और आसुरी शक्तियों का नाश करना चाहिए सुबह को समझेंगे सत्य की पूजा करेंगे तो स्वबोध जागृत होगा और देवी शक्तियों के प्रकृति कारण से हमारा और समाज का निर्माण होना चाहिए स्वयं सेवकों को सहज रहना है लेकिन भीतर से कठोर रहना है।
उन्होंने भारत विरोधी शक्तियों के प्रति सचेत करते हुए कहा कि समाज में विकृति पैदा ना हो इस प्रकार की सेवा स्वयं सेवकों को करना चाहिए।
भारतीय संस्कृति के महत्व को बताते हुए अपनी मूलभूत संस्कृति संस्कार पक्ष मातृभाषा के उपयोग वेशभूषा पर ध्यान देने की बात भी कहीं उन्होंने लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से सावधान रहते हुए भजन और भ्रमण के महत्व को भी बताया। उन्होंने कहा कि हम सभी को अपने बच्चों को पूरे भारत का भ्रमण करना चाहिए। जिससे कि वह भारतीय संस्कृति को और इसके गौरवशाली इतिहास को अधिक से अधिक जान सके। इस अवसर पर शिवराम चौधरी सुनील वस्त्रकार पुखराज यादव संस्कार श्रीवास्तव आदि मौजूद थे।

