रायपुर, 12 अगस्त 2025 । हर साल 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जाता है, ताकि इन शांत और शक्तिशाली जीवों के संरक्षण की ओर ध्यान खींचा जा सके। लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में यह दिन एक सवाल छोड़ जाता है – क्या हम हाथियों के साथ जीना सीख पाए हैं?
कभी जंगलों के राजा माने जाने वाले हाथी, आज गांवों में खौफ का पर्याय बनते जा रहे हैं। पिछले दिनों सुरजपुर जिले के गणेशपुर-प्रतापपुर रोड पर दो ग्रामीण हाथी के साथ सेल्फी लेने की कोशिश में बाल-बाल बचे। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लेकिन यह महज एक उदाहरण है उस मानव-हाथी संघर्ष का, जो अब हर महीने कहीं न कहीं मौत का कारण बन रहा है।
80 के दशक से शुरू हुआ सफर, अब 300 के करीब पहुंची आबादी..
छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौजूदगी 1980 के दशक में झारखंड और ओडिशा से आए दलों के साथ शुरू हुई थी। आज राज्य में 250-300 हाथी हैं, जिनका ठिकाना मुख्यतः सुरगुजा, जशपुर, रायगढ़, कोरबा और बालोद जिलों में है।
2020 में किए गए आकलन के अनुसार, सुरगुजा-जशपुर एलीफेंट रिजर्व में 72 और गुरु घासीदास नेशनल पार्क में 29 हाथियों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत संरक्षण प्रयासों के कारण हाल के वर्षों में इनकी संख्या बढ़ी है – लेकिन इसके साथ ही संघर्ष भी तेज हुआ है।
संघर्ष की असली वजह : खनन, कटाई और विकास का दबाव..
छत्तीसगढ़ के हाथी कॉरिडोर आज कोयला खनन, अंधाधुंध जंगल कटाई और अवैज्ञानिक विकास कार्यों की भेंट चढ़ रहे हैं।
फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले 5 वर्षों में 303 लोग और 6 वर्षों में लगभग 80 हाथी जान गंवा चुके हैं।
2021-22 में 95 मौतें
2022-23 और 2023-24 में 77-77
2024 में अब तक 10 लोग हाथियों के हमले में मारे जा चुके हैं..
सिर्फ लोगों की जान ही नहीं जा रही, बल्कि 2013-24 के बीच 6,000 एकड़ फसलें भी बर्बाद हुईं, जिससे ग्रामीणों में गहरी असुरक्षा फैली है। वहीं रायगढ़ में तीन हाथियों की बिजली करंट से मौत पर हाईकोर्ट ने ऊर्जा विभाग को फटकार लगाई थी।
जमीनी पहल : ‘हाथी मित्र’ और तकनीक की नई उम्मीद..

इन तमाम चुनौतियों के बीच कुछ सकारात्मक पहलें भी हो रही हैं। महासमुंद के टेंडुवाही गांव के संदीप कुमार आओले जैसे लोग ‘हाथी मित्र’ के रूप में हाथियों की ट्रैकिंग करते हैं, व्हाट्सएप ग्रुप पर अलर्ट भेजते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं।
राज्य में 2017 से ‘हाथी समाचार’ नामक रेडियो कार्यक्रम भी चल रहा है, जो हर शाम 5 बजे आकाशवाणी पर हाथियों की लोकेशन प्रसारित करता है।
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में शुरू किए गए AI ऐप ने बीते 7 महीनों में हाथियों से संबंधित मौतों को शून्य कर दिया है। यह ऐप 10 किमी के दायरे में गांवों को फोन और मैसेज के जरिए अलर्ट भेजता है।
विशेषज्ञों की राय : संरक्षण की असली कुंजी है “संतुलन”

नेचर जर्नल की एक स्टडी बताती है कि हाथियों और इंसानों के बीच टकराव अक्सर सर्दियों में होता है, जब फसलें पकती हैं। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हाथी अब नए इलाकों में तेजी से फैल रहे हैं – लेकिन ये फैलाव संघर्ष का कारण बन रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल संरक्षण योजनाओं से कुछ नहीं होगा। स्थानीय समुदायों को साथ लेकर चलना, हाथी कॉरिडोर की बहाली, खनन पर लगाम और संवेदनशील विकास कार्य जरूरी हैं।
क्या हाथी दुश्मन हैं ? या साथी बन सकते हैं ?
विश्व हाथी दिवस पर सवाल यही है – क्या हम इतने समझदार बन पाए हैं कि हाथियों को दुश्मन नहीं, साथी मान सकें ?
सरकार की कोशिशें जैसे प्रोजेक्ट एलीफेंट, AI आधारित ट्रैकिंग, और ‘हाथी मित्र’ जैसी जमीनी पहलों ने उम्मीद की किरण जगाई है। लेकिन जब तक जंगल नहीं बचते, और इंसानी लालच पर लगाम नहीं लगती – तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।
हाथी तभी तक जीवित रहेंगे, जब हम उनके घर – जंगल – को बचाएंगे।

