बिलासपुर । कांग्रेस पार्टी ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ “वोट चोर गद्दी छोड़” अभियान की शुरुआत बिलासपुर से करने का दावा तो बड़े जोर शोर से किया, लेकिन हकीकत में यह जंगी प्रदर्शन एक निराशाजनक शो साबित हुआ. दावा था 25,000 की भीड़ जुटाने का, लेकिन भीड़ उम्मीद से काफी कम थी और उसमें जोश तो नाममात्र का भी नहीं था.

मंच पर कांग्रेस के बड़े चेहरे, जिनमें छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पीसीसी चीफ दीपक बैज मौजूद थे. उन्होंने केंद्र सरकार पर जमकर हमले किए, लेकिन उनके भाषणों में वह धार नहीं दिखी, जो कार्यकर्ताओं में जोश भर सके.
पायलट का भाषण शुरू हुआ और खाली होने लगीं कुर्सियां..
सभा की शुरुआत में जब भूपेश बघेल और दीपक बैज ने बोलना शुरू किया, तब भी थोड़ी भीड़ थी, लेकिन जैसे ही सचिन पायलट ने माइक संभाला, नजारा बदल गया. सभा में बैठी महिला कार्यकर्ता और दूसरे लोग एक एक करके उठकर जाने लगे. देखते ही देखते आधे से ज्यादा कुर्सियां खाली हो गईं. ऐसा लग रहा था मानो कार्यकर्ताओं ने नेताओं के शब्दों से ज्यादा अपनी थकान को तरजीह दी. हैरानी की बात यह है कि यह सिलसिला सिर्फ पायलट के भाषण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बघेल और बैज के भाषण के दौरान भी कुर्सियां खाली होती रहीं.
कार्यकर्ताओं का ठंडा रवैया, 25,000 का दावा हवाई..

कांग्रेस का 25,000 लोगों की भीड़ जुटाने का दावा हवाई साबित हुआ. सभा स्थल पर न तो अपेक्षित भीड़ थी, न ही कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह. इससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि “वोट चोर गद्दी छोड़” जैसा आक्रामक नारा भी अगर पार्टी के अपने गढ़ में कार्यकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पा रहा, तो क्या कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति पर पुनर्विचार की जरूरत है?
बिलासपुर से कांग्रेस ने जिस शक्ति प्रदर्शन की उम्मीद की थी, वह जोश से ज्यादा खाली कुर्सियों और सन्नाटे में बदल गया. यह निश्चित ही पार्टी के लिए आत्ममंथन का विषय है कि इतने बड़े नेताओं की मौजूदगी में भी लोग क्यों उठकर चले गए.
सभा के बाद अव्यवस्था और हंगामा..

मंगलवार को हुई इस सभा के बाद शहर में अव्यवस्था का आलम दिखा. सभा खत्म होते ही सड़कों पर भीषण जाम लग गया, जिससे आम लोगों को भारी परेशानी हुई. सबसे शर्मनाक स्थिति तब बनी जब एक एंबुलेंस जाम में फंस गई और अंदर गंभीर मरीज तड़पता रहा, लेकिन किसी ने रास्ता देने की जहमत नहीं उठाई.

सभा स्थल पर पानी और प्राथमिक सुविधाओं की कमी के कारण एक महिला बेहोश होकर गिर पड़ी, जिसकी मदद के लिए भी कोई सामने नहीं आया. रही सही कसर कुछ युवकों के बीच हुई मारपीट ने पूरी कर दी, जो सड़क पर ही लात घूंसे बरसाने लगे. राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के नाम पर आम जनता को परेशान करने का यह कौन सा तरीका है?

