The High Court expressed displeasure over the pollution of the Arpa river, gave strict instructions to the officials..
बिलासपुर। न्यायधानी बिलासपुर की जीवन रेखा मानी जाने वाली अरपा नदी में नगर निगम क्षेत्र के 70 नालों का बिना ट्रीटमेंट गंदा पानी सीधे बहाए जाने पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने इस मामले पर जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए गहरी चिंता जताई। अदालत ने कहा कि इस लापरवाही के कारण न केवल नदी का पानी बल्कि भूजल भी गंभीर रूप से प्रदूषित हो रहा है।
किसी भी प्रकार की देरी पर सख्त टिप्पणी..
सुनवाई के दौरान अदालत ने नगर निगम और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि पुणे की एक कंपनी द्वारा तैयार किए गए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की डीपीआर पर शीघ्र निर्णय लेकर शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाए। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि इस मामले में कोई भी देरी स्वीकार्य नहीं होगी। मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी को होगी।
60% गंदे पानी का निपटान, 40% की समस्या बरकरार..
अदालत को याचिकाकर्ताओं ने जानकारी दी कि नगर निगम के 70 नालों से गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधे अरपा नदी में बहाया जा रहा है। नगर निगम ने बताया कि मार्च 2025 तक निर्मित होने वाले एसटीपी के माध्यम से 60% गंदे पानी को साफ करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि शेष 40% पानी के लिए पुणे की कंपनी ने डीपीआर तैयार किया था, जो अब तक मंजूर नहीं हो पाया है।
डीपीआर की मंजूरी में देरी पर उच्च न्यायालय की नाराजगी..
अदालत को बताया गया कि यदि डीपीआर को मंजूरी मिलती है, तो केंद्र सरकार के नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत इस परियोजना को फंड मिल सकता है। इसके बावजूद डीपीआर की मंजूरी में देरी होने पर हाई कोर्ट ने अधिकारियों से इस पर तीव्र कदम उठाने की मांग की।
अरपा नदी के उद्गम स्थल की स्थिति पर भी उठे सवाल..
अदालत ने अरपा नदी के उद्गम स्थल की स्थिति पर भी सवाल उठाए। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एडवोकेट सुनील ओटवानी ने बताया कि उद्गम स्थल पर पानी नहीं है और अरपा नदी मलेनिया, सोनकछार और फुलवारी नालों के पानी से मिलकर बहती है।

