छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता संग्रहण: सहकारिता की शक्ति से आदिवासियों की आजीविका में बदलाव


सहकार भारती की पहल ने मॉडल को बनाया और मजबूत, सीधे खातों में पहुंच रहा भुगतान


रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य, जो अपनी प्राकृतिक संपदा और घने जंगलों के लिए जाना जाता है, लाखों वनवासियों, आदिवासियों और ग्रामीण परिवारों के लिए तेंदूपत्ता संग्रहण को आजीविका का मुख्य आधार बनाए हुए है। देश के कुल तेंदूपत्ता उत्पादन में छत्तीसगढ़ की 20% हिस्सेदारी इसे अग्रणी राज्यों में शुमार करती है, जहां प्रतिवर्ष औसतन 16.72 लाख मानक बोरे तेंदूपत्ते का संग्रहण किया जाता है।

छत्तीसगढ़ के तेंदूपत्ता संग्रहण मॉडल की सबसे बड़ी खासियत इसकी मजबूत सहकारी प्रणाली है। राज्य में 31 जिला वनोपज सहकारी संघों के अंतर्गत 902 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियाँ कार्य करती हैं। ये समितियाँ सीधे संग्रहकर्ताओं से तेंदूपत्ता खरीदकर पारदर्शी वितरण सुनिश्चित करती हैं, जिनकी निगरानी राज्य स्तरीय लघु वनोपज संघ द्वारा की जाती है। इस सहकारी ढांचे को मजबूत बनाने में सहकार भारती की भूमिका सराहनीय रही है। सहकार भारती ने न केवल समितियों को संगठित किया, बल्कि आदिवासियों और ग्रामीणों को तेंदूपत्ता संग्रहण प्रक्रिया, उनके अधिकारों और समय पर भुगतान के बारे में जागरूक कर उन्हें सशक्त किया है।

वर्ष 2025 के लिए प्रति मानक बोरा तेंदूपत्ता का संग्रहण दर 5,500 रुपये निर्धारित किया गया है। संग्रहण कार्य अप्रैल के तीसरे सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक चलता है। प्रत्येक संग्रहकर्ता को एक संग्रहण कार्ड दिया जाता है, जिसमें “फड़ मुंशी” द्वारा प्रतिदिन एकत्र पत्तियों की प्रविष्टि की जाती है। भुगतान सीधे संग्रहकर्ताओं के बैंक खातों में किया जाता है, जिससे पारदर्शिता बनी रहती है। सहकार भारती ने सुझाव दिया है कि भविष्य में भुगतान सहकारी बैंकों की पास मशीन के माध्यम से सीधे खातों में किया जाए, ताकि बिचौलियों की भूमिका पूरी तरह समाप्त हो सके।

नीतिगत सुधार और उपलब्धियाँ..

राज्य सरकार द्वारा 2004 में लागू की गई पूर्व-क्रय नीति के तहत, तेंदूपत्तों को हरे अवस्था में ही ई-नीलामी के माध्यम से खरीदारों को बेच दिया जाता है। इस नीति ने अनावश्यक भंडारण, वित्तीय बोझ और विलंबित भुगतान जैसी समस्याओं को समाप्त कर दिया है। वर्ष 2024 में 855.68 करोड़ रुपये की संग्रहण मजदूरी का भुगतान किया गया, जबकि 2025 में भी 609.29 करोड़ रुपये सीधे संग्रहकर्ताओं के खातों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं। सहकार भारती के प्रयासों से महिलाओं की भागीदारी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

सहकार भारती के प्रदेश संयोजक घनश्याम तिवारी सहित अन्य पदाधिकारियों ने नियमित रूप से क्षेत्रों का निरीक्षण कर यह सुनिश्चित किया है कि कोई ठेकेदार मनमानी न करे और किसी भी अनियमितता पर त्वरित कार्रवाई हो। छत्तीसगढ़ का यह सहकारी मॉडल, जिसमें पारदर्शी नीलामी, तकनीक आधारित भुगतान और संग्रहकर्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता शामिल है, अन्य राज्यों के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।

तेंदूपत्ता संग्रहण सिर्फ एक व्यापार नहीं, बल्कि लाखों आदिवासियों की मेहनत, संस्कृति और जीविका का प्रतीक है, जिसे सहकार भारती और सरकार की नीतियों ने मिलकर और अधिक लाभकारी व सशक्त बनाया है।