समाजवाद, अहिंसा और लोककल्याण के प्रतीक महाराज अग्रसेन जी की 5149वीं जयंती पर विशेष..

समानता, सेवा और सद्भाव के अद्वितीय शिल्पी थे श्री श्री 1008 महाराज अग्रसेन जी..

द्वापर युग से कलयुग तक के न्यायप्रिय शासक, जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं..

बिलासपुर (छ.ग.), युगाब्द 5127, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, सोमवार।भारत की पवित्र भूमि पर समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, परंतु श्री श्री 1008 महाराज अग्रसेन जी का स्थान उन विशिष्ट महापुरुषों में है, जिन्होंने समाजवाद, समानता, अहिंसा और लोककल्याण को अपने शासन और जीवन का मूल आधार बनाया। आज उनकी 5149वीं जयंती के अवसर पर, उनके योगदान को स्मरण करना केवल इतिहास जानना नहीं, बल्कि आदर्श जीवन की प्रेरणा लेना है।

जन्म और युगों के दृष्टा:

महाराज अग्रसेन का जन्म ईसा पूर्व 3124 में द्वापर युग के अंतिम चरण में, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतापनगर में हुआ था। वे भगवान श्रीराम के पुत्र कुश की 34वीं पीढ़ी के वंशज थे। मात्र 15 वर्ष की आयु में, पिता राजा वल्लभसेन की मृत्यु के बाद उन्हें राजगद्दी सौंपी गई। महाभारत युद्ध का अनुभव प्राप्त कर वे यथार्थ शासन के मार्ग पर अग्रसर हुए।

राजनीति से आध्यात्म तक की यात्रा:

अग्रसेन जी ने 7 वर्ष द्वापर युग में और 101 वर्ष कलयुग में, कुल 108 वर्षों तक न्यायपूर्ण शासन किया। बाद में वे अग्रोहा (वर्तमान हरियाणा) में राज्य की स्थापना कर सनातन मूल्यों पर आधारित एक वैश्य समाज की नींव रखी। शासन त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम में तपस्या करते हुए उन्होंने भौतिक शरीर का परित्याग किया।

समाजवाद और ‘एक ईंट, एक रुपया’ की नीति:

एक अकाल के समय उन्होंने गुप्त रूप से भ्रमण करते हुए देखा कि एक परिवार ने अपनी थाली से अन्न का अंश निकालकर अतिथि को भोजन कराया। इस घटना से प्रेरित होकर उन्होंने समाज में ‘एक ईंट, एक रुपया’ की नीति लागू की, जिससे नवआगंतुकों को आत्मनिर्भरता और सम्मान से जीवन जीने का अवसर मिला।

जातिविहीन और अहिंसक समाज की स्थापना:

क्षत्रिय होते हुए भी उन्होंने पशुबलि और मांसाहार का विरोध करते हुए अहिंसा और शाकाहार को अपनाया। उन्होंने जातिविहीन समाज का निर्माण किया, जहाँ योग्यता के आधार पर स्वयंवर होते थे। उन्होंने क्षत्रिय वर्ण का त्याग कर वैश्य वर्ण स्वीकार किया और एक सर्वहितकारी समाज का निर्माण किया।

18 जनपद और गोत्र परंपरा की नींव:

अग्रसेन जी ने राज्य को 18 जनपदों (गणराज्यों) में विभाजित किया और प्रत्येक जनपद का नेतृत्व अपने पुत्रों को सौंपा। इन 18 पुत्रों के यज्ञ कर 18 ऋषियों से गोत्र दिलवाए गए, जो आज अग्रवाल समाज की पहचान बन चुके हैं:

गणराज्य         प्रमुख          गोत्र महर्षि

विभु                गर्ग              महर्षि गर्गाचार्य
भीमदेव           गोयल           महर्षि गोभिल
शिवजी            गोयन           महर्षि गौतम
सिद्धदेव।          बंसल           महर्षि वत्स
बासुदेव            कंसल          महर्षि कौशिक
बालकृष्ण         सिंघल          महर्षि शांडिल्य
धर्मनाम।          मंगल           महर्षि मंडव्य
अर्जुन              जिंदल          महर्षि जैमिन
रणकृत            तुंगल           महर्षि तांड्य
गुप्तनाम           ऐरन            महर्षि और्व
पुष्पदेव             धारण          महर्षि धौम्य
माधोसेन           मधुकुल        महर्षि मुदगल
केशवदेव           बिंदल           महर्षि वशिष्ठ
भुजमान            मित्तल          महर्षि मैत्रेय
कंवलदेव           कुच्छल         महर्षि कश्यप
गुणराज            नांगल           महर्षि नगेन्द्र
वासगी             भंदल            महर्षि भारद्वाज
शिवजीभान       तायल           महर्षि तैलंग

इन गोत्रों के माध्यम से जाति नहीं, बल्कि ऋषि परंपरा को आधार बनाना ही अग्रसेन जी का संदेश था।

मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए आधुनिक प्रयास:

वर्तमान में ललित हीरालाल गर्ग (बिलासपुर) और सुनील गंगाराम गर्ग जैसे चिंतकों ने हिंदू दैनंदिनी न्यास के माध्यम से हिंदू तिथियों और वैदिक गणनाओं को संरक्षित करने का कार्य प्रारंभ किया है। यह प्रयास आज की तारीख आधारित संस्कृति को तिथि आधारित सत्य से जोड़ने की एक क्रांतिकारी पहल है।

महाराज अग्रसेन जी की विशेषताएँ:

द्वायुगीय दृष्टा: द्वापर और कलयुग दोनों में शासन..

जातिविहीन समाज की स्थापना..

अहिंसा और शाकाहार का प्रचार..

वर्ण परिवर्तन द्वारा समाज के लिए श्रेष्ठ मार्ग का चयन..

‘एक ईंट, एक रुपया’ से समाजवाद की मिसाल..

समाजसेवा, शिक्षा, जल संरक्षण और धर्मशालाओं का निर्माण..

गोत्र व्यवस्था से परिवारिक और सामाजिक संगठन का निर्माण..

लोकतंत्र और न्याय पर आधारित शासन प्रणाली..

5149वीं जयंती पर संदेश:

इस वर्ष, महाराज अग्रसेन जी की 5149वीं जयंती पर, उनके वंशजों व अनुयायियों को यह संकल्प लेना चाहिए कि:

जातिवाद का त्याग करें, गोत्र की परंपरा को अपनाएं

समरसता और समानता आधारित समाज की स्थापना करें

नवपीढ़ी को उनके विचारों और इतिहास से अवगत कराएं।

✍️ लेखक:

ललित हीरालाल गर्ग
बिलासपुर (छ.ग.)
हिंदू दैनंदिनी न्यास
युगाब्द 5127, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा