Plantation on paper, dry forest on the ground.. schemes fail due to collusion of departmental officers..
रायपुर। छत्तीसगढ़ का वन विभाग आज सवालों के कटघरे में खड़ा है। एक तरफ पर्यावरण संरक्षण की बड़ी-बड़ी योजनाएं कागज़ों पर दौड़ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत बेहद डरावनी है। भ्रष्टाचार, लापरवाही और मिलीभगत का ऐसा जाल फैला है कि न पौधे बच रहे हैं, न जंगल।
हर साल करोड़ों रुपये पौधारोपण और वन विकास पर खर्च किए जाते हैं, लेकिन हकीकत ये है कि जंगल के नाम पर सिर्फ रिपोर्टों में हरियाली दिखती है। आदिवासी क्षेत्रों में पौधे कुछ ही महीनों में सूख जाते हैं, लेकिन फाइलों में 80% सफलता का दावा किया जाता है। वन्यजीव गलियारे सिकुड़ते जा रहे हैं, जल स्रोत सूख रहे हैं, लेकिन विभाग की नींद नहीं टूटती।
कर्मचारियों की भारी कमी और जवाबदेही का अभाव..
वन रक्षकों और अधिकारियों की भारी कमी है। जो लोग काम पर हैं, उन्हें न संसाधन मिलते हैं, न समय पर ट्रेनिंग। ऊपर से ट्रांसफर की राजनीति इतनी हावी है कि कोई भी अधिकारी टिक कर काम नहीं कर पाता। इससे योजनाएं अधूरी रह जाती हैं और जवाबदेही शून्य हो जाती है।
अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप..
सूत्रों की मानें तो कुछ उच्च अधिकारी टेंडर, ठेके, मुआवज़ा और भर्ती प्रक्रिया में धांधली कर रहे हैं। पसंदीदा लोगों को तैनाती, लकड़ी की अवैध बिक्री और पर्यावरण अनुदान में गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है। सामाजिक संगठनों ने मुख्यमंत्री से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
जनता को नहीं मिलती जानकारी..
विभाग की वेबसाइट सालों से अपडेट नहीं हुई है। योजनाओं की जानकारी न तो ग्राम स्तर तक पहुंचती है, न ही कोई शिकायत समाधान प्रणाली है। आदिवासियों को भूमि अधिकार भी नहीं दिए जा रहे, उल्टा उन्हें अतिक्रमणकारी बताकर हटाया जा रहा है।

