बिलासपुर, सीपत। एक तरफ एनटीपीसी सीपत अपना 51वां स्थापना दिवस रोशनी, जश्न और व्यवस्थापकीय तामझाम में डूब कर मना रहा है, तो दूसरी ओर उसकी चारदीवारी के बाहर के गांव आज भी राख, धूल और गहरी निराशा की गिरफ्त में हैं। जश्न की इस झिलमिलाहट के बीच दर्द की यह कड़वी सच्चाई गुरुवार को जनप्रतिनिधियों ने प्रेस वार्ता कर मीडिया को बताई उन्होंने कहा एनटीपीसी अब विकास का नहीं, बल्कि विनाश का प्रतीक बन चुका है।


जनप्रतिनिधियों ने कहा कि एनटीपीसी की कॉलोनी के भीतर तो बिजली जगमग है, पर बाहर के सीपत, जांजी, कौड़िया, देवरी, रलिया, कर्रा और गतौरा जैसे प्रभावित गांव आज भी अंधेरे और उड़ती राख के साये में हैं। उन्होंने आम जनता का दुख बयां करते हुए कहा कि इन गांवों की सड़कें टूटी हुई हैं, पानी गंदा है और रोजगार पूरी तरह गायब है।
साँसों में भर गई राख, खेतों का हुआ विनाश..

इधर ग्रामीणों का कहना है कि राखड़ डेम से उड़ती राख ने ग्रामीणों के उपजाऊ खेतों को बर्बाद कर दिया है, और लोगों की साँसों में धूल भर दी है। लोगों का कहना है जिस विकास की तस्वीर एनटीपीसी मंचों पर दिखाता है, वह सिर्फ उसकी कॉलोनी की चारदीवारी तक सीमित है, जबकि बाहर की ज़मीन पर वह विकास विनाश में बदल गया है।
यह जनता का पैसा है, क्या जनता को इसका हिसाब नहीं मिलना चाहिए?
आम लोगों का प्रश्न है..
स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता क्यों नहीं दी जा रही?
राखड़ डेम से प्रदूषण रोकने की ठोस पहल क्यों नहीं की गई?
दलदल प्रभावित किसानों को मुआवजा अब तक क्यों नहीं मिला?
एनटीपीसी का सीएसआर फंड आखिर कहाँ जाता है?
घटिया निर्माण करने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
स्थानीय मजदूरों के शोषण पर प्रबंधन मौन क्यों है?
अब तक मुआवजा नहीं..
पाइपलाइन और रेललाइन के निर्माण से जिन गांवों की ज़मीनें बर्बाद हुईं, उन्हें मुआवजा तक नहीं मिला। सड़कें गड्ढों में तब्दील हैं, पर प्रशासन आँखें मूँदे बैठा है। जनप्रतिनिधियों का कहना है अब जनता राख नहीं, हक़ मांगेगी। यह लड़ाई गाँव-गाँव से उठने वाली आवाज़ बनेगी।
आज शाम होगा धरना..
शुक्रवार आज शाम 7 बजे सीपत के नवाडीह चौक में कांग्रेस कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि और प्रभावित गांवों के सरपंच मिलकर कैंडल मार्च निकालेंगे।
जनप्रतिनिधियों का कहना है यह आंदोलन किसी पार्टी का नहीं, बल्कि सीपत की जनता का है, जो रोशनी के भीतर छिपे अंधेरे को उजागर करने का वक्त आ गया है।

