बिलासपुर, 26 जून: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित एनजीओ घोटाले में बुधवार को हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान अस्पताल के नाम पर हुए करोड़ों के इस कथित घोटाले में याचिकाकर्ता और सीबीआई, दोनों की बहस खत्म हो चुकी है। हाईकोर्ट ने अब इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिससे कई आईएएस और राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों की सांसे अटकी हुई हैं।
यह मामला तब सामने आया जब तत्कालीन चीफ सेक्रेट्री की रिपोर्ट के बाद डिवीजन बेंच ने इसकी गंभीरता को देखते हुए सीबीआई जांच का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जबलपुर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी। हालांकि, घोटाले के आरोपों से घिरे आईएएस और राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) दायर कर सीबीआई जांच पर रोक लगाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए मामले को वापस छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भेज दिया, जिसके बाद से यहां सुनवाई चल रही है।
क्या है पूरा मामला?
रायपुर के कुशालपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने छत्तीसगढ़ के कुछ वर्तमान और रिटायर्ड आईएएस अफसरों पर एनजीओ के नाम पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगाते हुए एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि खुद उन्हें एक सरकारी अस्पताल, राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान, में कार्यरत बताते हुए वेतन की जानकारी मिली। जब उन्होंने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी, तो पता चला कि नया रायपुर स्थित यह कथित अस्पताल एक एनजीओ चला रहा है, जिसमें करोड़ों की मशीनें खरीदी गई हैं और उनके रखरखाव में भी करोड़ों का खर्च दिखाया गया।
राज्य को 1000 करोड़ का बड़ा नुकसान..
इस मामले में पहली याचिका 2017 में दायर की गई थी, और 2018 में इसे जनहित याचिका के रूप में सुना जाना शुरू हुआ। सुनवाई के दौरान चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि राज्य स्त्रोत नि:शक्त जन संस्थान नाम की कोई संस्था वास्तव में है ही नहीं, बल्कि इसे केवल कागजों पर ही गठित किया गया था। अनुमान है कि इस संस्था के माध्यम से 2004 से 2018 के बीच 10 साल से अधिक समय तक राज्य को लगभग 1000 करोड़ रुपए का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा।
इस घोटाले में राज्य के छह आईएएस अधिकारी, आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती के साथ सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना, रायपुर में बताया गया था, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी: ‘यह संगठित और सुनियोजित अपराध है’
याचिका में यह भी खुलासा हुआ कि एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया और एसबीआई मोतीबाग के तीन खातों से संस्थान में कार्यरत अलग अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड का उपयोग करके खाते खुलवाए और पैसे निकाले। सुनवाई के दौरान, राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने एक शपथ पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने 150 से 200 करोड़ रुपए की गलतियां सामने आने की बात स्वीकार की। इस पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव ‘गलतियां और त्रुटि’ बता रहे हैं, वह वास्तव में एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। कोर्ट ने सीबीआई को जांच के निर्देश दिए थे, और हाईकोर्ट के निर्देश पर घोटाले में फंसे आधा दर्जन से अधिक आईएएस अधिकारियों ने भी अपना जवाब प्रस्तुत किया है। अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं।

