भारतीय रेलवे ने अपने सबसे व्यस्त मार्गों में से एक दिल्ली-मुंबई रूट पर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कवच 4.0 सिस्टम लगा दिया है. यह आधुनिक और स्वदेशी तकनीक वाला सिस्टम मथुरा-कोटा रेलखंड पर लगाया गया है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. यह सिस्टम ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा और दुर्घटनाओं को रोकेगा.

क्या है कवच 4.0 और क्यों है यह खास ?
कवच एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली है, जिसे भारत में ही विकसित किया गया है. इसे सेफ्टी इंटिग्रिटी लेवल 4 (SIL-4) पर तैयार किया गया है, जो सुरक्षा का सबसे ऊंचा मानक है. इस सिस्टम को विकसित करने में 20 से 30 साल नहीं, बल्कि बहुत कम समय लगा. इसकी खासियत यह है कि यह ट्रेनों की गति को नियंत्रित करता है, जिससे दुर्घटना की संभावना कम हो जाती है.
यह सिस्टम लोको पायलटों के लिए भी काफी मददगार है. अब कोहरे या कम विजिबिलिटी में उन्हें बाहर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि सारी जानकारी डैशबोर्ड पर दिखाई देगी. यह जरूरत पड़ने पर खुद-ब-खुद ब्रेक भी लगा सकता है.
कब हुई थी शुरुआत ?
कवच का विकास 2015 में शुरू हुआ था और 3 साल तक इसकी टेस्टिंग चलती रही. शुरुआती तौर पर इसे दक्षिण मध्य रेलवे (SCR) में लगाया गया और 2018 में इसे पहली बार संचालन प्रमाणपत्र मिला. SCR के अनुभवों के आधार पर ही कवच का उन्नत संस्करण कवच 4.0 विकसित किया गया, जिसे मई 2025 में 160 किमी प्रति घंटे की गति के लिए मंजूरी मिली.
देशभर में फैलेगी कवच की सुरक्षा..
रेलवे अगले 6 सालों में देशभर के कई और रेल मार्गों पर कवच 4.0 को लगाने की तैयारी कर रहा है. रेलवे ने इसके लिए बड़े स्तर पर ट्रेनिंग भी शुरू कर दी है. अब तक 30,000 से ज्यादा लोगों को इस सिस्टम पर ट्रेनिंग दी जा चुकी है. यहां तक कि AICTE से मान्यता प्राप्त 17 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने अपने बी.टेक कोर्स में भी कवच को शामिल करने के लिए समझौता किया है.
कवच की प्रगति के आंकड़े..
- ऑप्टिकल फाइबर: 5,856 किमी
- दूरसंचार टावर: 619
- स्टेशन पर कवच: 708
- लोको पर कवच: 1,107
- ट्रैकसाइड उपकरण: 4,001 रूट किलोमीटर
रेलवे हर साल सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करता है. कवच जैसी पहल दिखाती है कि रेलवे अपने यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कितना गंभीर है.

