Important decision of Supreme Court: Police officers who register false cases will be prosecuted without prior permission.
नई दिल्ली, 18 दिसंबर 2024 :सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि झूठे मामले दर्ज करने या सबूत गढ़ने वाले पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 197 के तहत पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
धारा 197 CRPC के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों पर उनके आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किए गए कार्यों के लिए अभियोजन से पहले सरकार की अनुमति आवश्यक होती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि झूठे मामले दर्ज करना और सबूत गढ़ना किसी भी सरकारी अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं हो सकता। इसलिए, ऐसे कृत्यों के लिए धारा 197 के तहत संरक्षण नहीं मिलता।
यह निर्णय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले के संदर्भ में आया, जहां हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला इस आधार पर रद्द कर दिया था कि धारा 197 CRPC के तहत पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए कहा कि ऐसे मामलों में पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ये कार्य आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं हैं।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, “धारा 197 CRPC का संरक्षण केवल आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों के लिए उपलब्ध है। चूंकि सबूत गढ़ना और फर्जी मामले दर्ज करना पुलिस अधिकारी के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं है, इसलिए धारा 197 CRPC के तहत संरक्षण ऐसे कृत्यों पर लागू नहीं होता।”
इस फैसले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करके झूठे मामले दर्ज न करें या सबूत न गढ़ें, और यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन पर बिना किसी पूर्व अनुमति के मुकदमा चलाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि लोक सेवकों को मुकदमे से दी जाने वाली छूट के दायरे को स्पष्ट किया जाना चाहिए, ताकि इसका दुरुपयोग गैरकानूनी कार्यों के संरक्षण में न हो।

