Govardhan Puja: Worship festival of nature and the five elements.

बिलासपुर :- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजन, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में प्रकृति और पंचतत्वों का महत्व दर्शाने वाला पर्व है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देवता की पूजा के स्थान पर प्रकृति को प्रधानता देते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। इस परंपरा की शुरुआत तभी से मानी जाती है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को 56 भोग अर्पित कर इस पर्व को नया स्वरूप प्रदान किया।
गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व वैष्णव भक्तों में विशेष रूप से देखा जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के इस उपदेश का पालन करते हुए इस पर्व को प्रकृति के संरक्षण के संदेश के साथ मनाते हैं। इस दिन घरों में षडरस यानी छह रसों का भोग तैयार किया जाता है, जो कि आयुर्वेद के अनुसार सबसे श्रेष्ठ भोजन माना गया है। इन छह रसों में अम्ल, कषाय, मधु, तिक्त, क्षार और लवण शामिल हैं, जिनका सेवन करने से शरीर को सभी आवश्यक तत्व मिलते हैं और स्वास्थ्य संतुलन बना रहता है।
इस दिन विशेष रूप से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा या प्रतीक स्वरूप की पूजा होती है और इसमें गाय, जंगलों और पर्वतों का सम्मान किया जाता है, जो कि प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा में 56 प्रकार के भोग बनाए जाते हैं, जिनका प्रतीकात्मक रूप से भोग अर्पित किया जाता है, और इसे षडरस से युक्त भोजन के रूप में तैयार किया जाता है।
वर्तमान समय में, गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करती है, बल्कि प्रकृति और जीव-जंतुओं के संरक्षण का संदेश भी देती है। समाज को संतुलित, स्वस्थ और पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने की प्रेरणा देने वाला यह पर्व सभी भक्तजनों को प्रभु श्रीकृष्ण के संदेश को आत्मसात करने की प्रेरणा देता है।

