Due to e-kuber, all labour related works of forest department have come to a standstill.. only 15% budget spent.. BJP may face huge loss in three tier panchayat elections!!
छत्तीसगढ़ में वनों के समीप ग्रामों को सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला वन विभाग का हाल ख़स्ता हो चुका है।जब से वन विभाग में ई-कुबेर नाम का सॉफ्टवेर अपनाया गया है, पूरा काम ठप्प पड़ गया है। पूरे छत्तीसगढ़ में वन विभाग अपने बजट का मात्र 15% ही खर्च कर पाया है।फ़रवरी में नया बजट अनाउंस हो जाएगा। सिर्फ़ 4 महीने में 85% बजट खर्च कर पाना नामुमकिन लगता है। इसके पीछे बिना सोचे समझे मज़दूरो के पेमेंट के लिए अपनाया गया, ये नया सॉफ्टवेर है।जब समय काम का है, तो पूरा वनविभाग इस सॉफ्टवेर पे प्रयोग कर रहा है।इस सॉफ्टवेर को किसी एक वनमण्डल में पहले लागू करके देखना चाहिए था, पर अतिउत्साह में सभी वनमंडलों में एक साथ लागू कर दिया गया। इस घटिया सॉफ्टवेर का दक्षता इसी बात से पता लगाया जा सकता है कि दिवाली के पहले वन विभाग के सिर्फ़ चौकीदारो के तनख़्वाह के लिए सभी फील्ड और ऑफिस स्टाफ को दिन रात एक करना पड़ गया। जब कुछ हज़ार स्टाफ के सैलरी के लिये इतनी मशक़्क़त करनी पड़ रही है, तो लाखों मज़दूरो का पेमेंट कैसे हो पाएगा ??
इन सब कारणों से विभाग में सारे स्टाफ काम रोक दिये है। क्योंकि काम अत्यधिक करा लिये और उसका पेमेंट तत्काल ना हुआ तो बड़ा लॉ एंड ऑर्डर जैसी स्थिति बन जाएगी। वैसे भी जिस तरह अभी लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति छत्तीसगढ़ में बनी हुई है, सरकार नहीं चाहेगी कोई और ऐसी स्थिति आदिवासियों के बीच बने।बस्तर और सरगुज़ा संभाग में अधिक्तर जनसंख्या आदिवासियों की है और उनको रोज़गार देने में वन विभाग की बड़ी भूमिका होती है। दोनों संभाग के लगभग हर विधानसभा और लोकसभा सीट पर बीजेपी जीत कर आई है। मगर इस तरह के पंगु सॉफ्टवेर के चलते कही स्थिति पलट ना जाये,सरकार को ध्यान रखना होगा।
हर चीज़ को ऑनलाइन करने के चक्कर में पूरा वन विभाग में लेबर पेमेंट क्राइसिस हो गई है। फील्ड और ऑफिस के स्टाफ रात दिन मेहनत करके सिर्फ़ चौकीदारो की सैलरी दे पा रहे है। वन विभाग का 90% बजट मजदूरो के जेब में जाती है और ये सारे काम अभी रुके हुए है। जो थोड़े बहुत काम हुए भी है,उसका भी मज़दूरी पेमेंट नहीं हो पा रही है।इस तरह का घटिया सॉफ्टवेर शायद ही छत्तीसगढ़ के किसी विभाग में पहले कभी आया हो। अगर मज़दूरो को ऑनलाइन पेमेंट करने वाला ये सॉफ्टवेर काम भी कर जाये, तो बस्तर और सरगुज़ा के आदिवासी अंचल में कैसे पेमेंट होगा,जहाँ लोग तत्काल काम करके पेमेंट माँगते है और बहुत से लोगो के पास तो बैंक अकाउंट भी नहीं है। इन सब कारणों से ना तो लेबर काम करना चाहता है ना ही स्टाफ काम कर पा रहे। अब तक पूरे 7 महीने में बजट का मात्र 15% ही खर्च हो पाया है। जनवरी में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने है और यही स्थिति रही तो बीजेपी का बुरा हाल हो सकता है। सरकार को तत्काल इसपर एक्शन लेना चाहिए। ये सिर्फ़ चुनाव का ही नहीं लॉ एंड ऑर्डर की भी बात है।

