बिलासपुर। जिले के आश्रम और छात्रावासों में रह रहे हजारों बच्चों की सुरक्षा और सुविधाओं को लेकर प्रशासन ने एक बार फिर दावे किए हैं। जिला स्तरीय निगरानी समिति की बैठक में अधिकारियों ने बताया कि छात्रावासों में सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कितनी मेल खाती है, यह एक बड़ा सवाल है।

छात्रावासों में सुरक्षा के दावे, लेकिन समस्याएं बरकरार..
बैठक में बताया गया कि जिले में 67 छात्रावास और 17 आश्रम संचालित हैं, जहां कुल 4697 आदिवासी छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। प्रशासन का दावा है कि कन्या छात्रावासों में सीसीटीवी से निगरानी की जा रही है और सुरक्षा के लिए महिला होमगार्ड तैनात हैं। वहीं, सभी छात्रावासों में बाउंड्रीवाल भी बनाई गई है। लेकिन सवाल यह है कि जब इतनी व्यवस्थाएं हैं, तो फिर छात्रावासों में अव्यवस्थाओं की शिकायतें क्यों आती हैं ?
बच्चों की सुविधाओं पर कितना ध्यान ?
आयुक्त सीएल जायसवाल ने बैठक में बताया कि छात्रावासों में बच्चों को प्रतिमाह 1500 रुपये की छात्रवृत्ति दी जाती है, जिसमें भोजन, गणवेश, स्टेशनरी और अन्य सामग्री शामिल है। लेकिन कई छात्रावासों में समय पर छात्रवृत्ति न मिलने और भोजन की गुणवत्ता को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। छात्रों को दी जाने वाली खेलकूद सामग्री और कोचिंग की सुविधाओं पर भी संदेह बना रहता है।
निगरानी समितियां बनीं, लेकिन क्या वाकई निरीक्षण होता है ?
बैठक में अधिकारियों ने बताया कि हर छात्रावास की नियमित समीक्षा की जाती है और अधीक्षक स्थानीय समितियों के माध्यम से निगरानी करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि कई छात्रावासों में सालों से बड़े बदलाव नहीं हुए हैं। बच्चों की सुरक्षा और सुविधाओं को लेकर जो आंकड़े पेश किए जाते हैं, उनका वास्तविकता से कितना मेल है, यह जमीनी निरीक्षण के बाद ही स्पष्ट हो सकता है।
बैठक में प्रशासन ने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की बात कही, लेकिन यदि व्यवस्थाएं वाकई इतनी बेहतर हैं, तो फिर अभिभावकों और छात्रों की शिकायतें क्यों आती हैं? क्या प्रशासन सिर्फ बैठकें कर दावे करने तक ही सीमित है, या फिर जमीनी हकीकत सुधारने के लिए ठोस कदम भी उठाए जाएंगे ?

