Chhattisgarh’s first Jurassic rock garden is ready to attract tourists.. The country’s most unique fossil park was built in Manendragarh with the initiative of IFS officials..
मनेंद्रगढ़। मनेंद्रगढ़ वनमंडल में स्थित गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क एक प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में उभर रहा है।यहाँ 29 करोड़ वर्ष पुराने समुद्री जीवाश्म मिले है।भारत में ऐसे जीवाश्म केवल चार अन्य स्थानों – सुबांसुरी (अरुणाचल प्रदेश), राजहरा (झारखंड), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) और खेमगांव (सिक्किम) में पाए जाते हैं।

गोंडवाना फॉसिल पार्क इन सभी में सबसे बड़ा और पुराना है।मनेंद्रगढ़ का मरीन फॉसिल पार्क इसलिए विशेष है क्योकि यह एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा समुद्री जीवाश्म पार्क है।यह जीवाश्म हसदेव नदी के किनारे लगभग 1 km के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक का दर्जा भी प्राप्त है।इसकी खोज 1954 में भूवैज्ञानिक एसके घोष ने कोयला खनन के दौरान की थी।यहां से द्विपटली (बायवेल्व) जीव, गैस्ट्रोपॉड, ब्रैकियोपॉड, क्रिनॉइड और ब्रायोजोआ जैसे प्राचीन समुद्री जीवों के जीवाश्म मिले हैं।इसके चलते यह देशभर के शोधार्थी और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।इसकी पुष्टि 2015 में बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैलेंटोलॉजी, लखनऊ के द्वारा भी की गई है।वैज्ञानिकों के अनुसार, यह क्षेत्र पर्मियन युग के समय समुद्र में डूबा हुआ था, ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ा, जिससे समुद्री जीव चट्टानों में दब गए और लाखों वर्षों में जीवाश्म के रूप में बदल गए, जो बाद में जलस्तर घटने से उभरकर उपर आ गए।यह पार्क गोंडवाना महाद्वीप के भूगर्भीय इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।ये फॉसिल्स उन समुद्री जीवों के अवशेष हैं जो करोड़ों वर्ष पहले यहां मौजूद समुद्र में रहते थे। प्राकृतिक परिवर्तन और पृथ्वी के पुनर्निर्माण के दौरान, समुद्र के पीछे हटने से ये जीव पत्थरों के बीच दब गए।

पाँच साल पहले तक यह क्षेत्र बिना संरक्षण के ख़ाली पड़ा हुआ था ।बायोडायवर्सिटी बोर्ड में रहते हुए अरुण पांडे IFS ( बैच – 1994 ) ने विशेष रुचि दिखाते हुए फॉसिल पार्क बनाने के लिए कार्ययोजना बनाई और बजट अलॉट किया। तब जाकर पूरा क्षेत्र में बाउंड्री वाल का निर्माण हुआ और क्षेत्र संरक्षित हुआ । वर्तमान में भी मरीन फॉसिल पार्क को विकसित करने में इनका बड़ा योगदान रहा है। विभागीय मंत्री केदार कश्यप और स्थानीय विधायक और स्वास्थ मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने भी इसको पर्यटन स्थल बनाने में विशेष रुचि दिखायी ।

इसके उपरांत मनेंद्रगढ़ डीएफओ मनीष कश्यप ( आईएफएस 2015 बैच ) ने भी यहाँ पर्यटन की दृष्टि से अलग अलग कार्य किए जो सम्भवतः देश के किसी दूसरे फॉसिल पार्क में नहीं हुआ है इस क्षेत्र को गुजरात और झारखंड के डायनासोर फॉसिल पार्क के तर्ज पर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया।

हसदेव नदी के किनारे प्राकृतिक हार्ड ग्रेनाइट रॉक्स को काट के प्राचीन जीवजंतुओ की कला कृतियाँ बनायी गई है जो लोगो को आकर्षित कर रही है।बड़े पत्थरों को तराश के ज़मीन, पानी और एम्फीबियन के अब तक 35 प्राचीन जानवरों की मूर्तियाँ बनायी जा चुकी है। इसको देख के पर्यटक समझ सकेंगे की पृथ्वी में पहले किस तरह के विशालकाय जानवर हुआ करते थे जहाँ इंसान का रह पाना संभव नहीं था।इस तरह का यह छत्तीसगढ़ में पहला रॉक गार्डन होगा।

इसके अलावा इंटरप्रिटेशन सेंटर भी बनाया गया है जहाँ पर्यटक फॉसिल के पत्थर को देख सकेंगे और फॉसिल बनने की प्रक्रिया को भी पेंटिंग के माध्यम से जान सकेंगे। 450 करोड़ साल पहले पृथ्वी कैसे बना और अब तक उसमे क्या बदलाव हुए उसे भी जान सकेंगे।कैक्टस गार्डन और बम्बू सेटम भी विकसित किया जा रहा है।लोग हसदेव नदी में ही बम्बू राफ्टिंग का भी आनंद उठा सकेंगे।इस फॉसिल पार्क में नेचर ट्रेल का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकेंगे।देश के दूसरे फॉसिल पार्क में अब तक इस तरह के फैसिलिटी नहीं है।

सरगुजा संभाग में अब तक ज्यादातर पर्यटक मैनपाट को ही देखने आते है।वन विभाग का यह अभिनव पहल गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क को छत्तीसगढ़ के बड़े पर्यटन स्थल के रूप में पहचान दिलायेगा।बांधवगढ़ मनेंद्रगढ़ से सिर्फ़ तीन घंटे की दूरी पर है,इसलिए वहाँ भी कई साइन बोर्ड लगाया गया है,ताकि वहाँ आने वाले पर्यटक मनेंद्रगढ़ भी आए।मनेंद्रगढ़ में स्थित सिद्ध बाबा मंदिर और अमृतधारा जलप्रपात को भी इसी तर्ज पर विकसित करके टूरिज्म सर्किट बनाने की योजना है।मनेंद्रगढ़ ज़िला सरगुजा संभाग में थोड़ा अलग हो जाता है, इन सब कार्यों से वहाँ लोगो की आवाजाही और विकास कार्य भी बढ़ेंगे।


