

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ की स्थानीय इकाई ने प्रेमचंद जयंती पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें “प्रेमचंद का साहित्य और समाज” विषय पर विचार-विमर्श किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हबीब खान ने की और संचालन डॉ. अशोक शिरोडे ने किया।
मुख्य वक्ता मुदित मिश्रा ने प्रेमचंद की रचनाओं की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कृतियाँ स्वतंत्रता पूर्व भारतीय समाज, विशेषकर ग्रामीण जीवन की वास्तविकता का सजीव चित्रण करती हैं। रफीक खान ने प्रेमचंद को ग्रामीण जीवन के चितेरे लेखक के रूप में वर्णित किया और उनकी रचनाओं को समाज का प्रासंगिक दस्तावेज बताया।
निहाल सोनी ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियाँ हमें संवेदनशील बनाती हैं और जीवन को समझने की दृष्टि प्रदान करती हैं। श्रीमती मीना सोनी ने “सद्गति” कहानी का उल्लेख करते हुए इसे अत्यंत प्रभावशाली और मार्मिक बताया। शिवानी ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियाँ नारी प्रश्नों और उसकी पीड़ा को प्रभावी ढंग से उठाती हैं और नारी को संघर्ष की प्रेरणा देती हैं।
अरुण दाभड़कर ने प्रेमचंद के साहित्य में सामंती समाज की टूटन और पूंजी युग की प्रारंभिक दशाओं के प्रभावी रेखांकन की चर्चा की। मधुकर गोरख ने प्रेमचंद के भाषा के प्रति योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने जन भाषा के माध्यम से साहित्य को लोकप्रिय बनाया। स्वाति गुप्ता नायक ने “दो बैलों की कथा” का उल्लेख करते हुए प्रेमचंद की लेखकीय संवेदनाओं को व्यक्त किया।
लखन सिंह ने प्रेमचंद के लेखन में शोषण और दमन के विरुद्ध संघर्ष के दायित्व को रेखांकित किया। प्रथमेश मिश्रा ने प्रेमचंद के उपन्यास के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए समाज की कुरीतियों पर चोट की और उनके समाज सुधारक दृष्टिकोण की प्रशंसा की।
इस कार्यक्रम में शिव सारथी, ज्योत्सना सिंह, चंद्रप्रकाश जायसवाल, नरेंद्र तिवारी, ओमप्रकाश भट्ट, सुरेंद्र वर्मा, श्याम बिहारी बनाफर, श्रुति सोनी, युवराज सोनी, धर्मेंद्र निर्मलकर और अनन्या की भागीदारी उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन श्याम बिहारी बनाफर ने किया।


