Caste Census: When in power it was against, today in opposition it is supporting.. Congress’s changing caste..
मनीष अग्रवाल..राजनीतिक विश्लेषक
बिलासपुर। देश में इस वक्त जातिगत जनगणना का मुद्दा गर्म है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल, इसे सामाजिक न्याय का प्रतीक बता रहे हैं और इसके लिए भाजपा सरकार पर दबाव बना रहे हैं। वे दावा कर रहे हैं कि यह उनकी पुरानी मांग है जिसे अब स्वीकार किया गया है। लेकिन भारतीय राजनीति की विडंबना देखिए कि जो दल आज इसके सबसे बड़े पुरोधा बन रहे हैं, अतीत में उनका रुख बिल्कुल विपरीत था।
बात 2011 की है, जब केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी, जिसमें सपा और राजद जैसे दल भी भागीदार थे। उस समय भारतीय जनता पार्टी ने संसद में पुरजोर मांग उठाई थी कि आगामी जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जुटाए जाएं ताकि देश में ओबीसी, दलित और आदिवासियों की सही संख्या का पता चल सके। भाजपा नेताओं, जिनमें गोपीनाथ मुंडे और हुकुम देवनारायण सिंह जैसे नाम शामिल थे, ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा था।
लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार और उसके नेताओं – राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम – ने इसे अव्यवहारिक बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया था। तर्क दिए गए थे कि जनगणनाकर्मी किसी का जाति प्रमाणपत्र नहीं देख सकते और लोग कुछ भी बता सकते हैं, जिससे सही आंकड़े जुटाना असंभव है। तमाम दलीलें देकर भाजपा की मांग ठुकरा दी गई।
आज वही कांग्रेस और उसके सहयोगी दल अचानक जाति जनगणना के सबसे बड़े चैम्पियन बन गए हैं। 2014 में सत्ता से बाहर होने और राजनीतिक समीकरण बदलने के बाद, उनका स्टैंड पूरी तरह बदल गया। अब वे इसे अपनी जीत बता रहे हैं और भाजपा पर निशाना साध रहे हैं।
यह दर्शाता है कि किस तरह राजनीतिक दल अपने सिद्धांतों या मांगों को सुविधा अनुसार बदलते रहते हैं। जब सत्ता में थे, तब जाति जनगणना को असंभव बताया; जब विपक्ष में आए और राजनीतिक लाभ दिखा, तो वही मांग सामाजिक न्याय का झंडा बन गई। देश की जनता इस ‘कथनी और करनी’ के फर्क को बखूबी देख रही है और यह सवाल पूछना लाजमी है कि क्या यह वाकई सिद्धांत की लड़ाई है या महज राजनीतिक अवसरवादिता?

