बिलासपुर : जिला सहकारी बैंक की कुर्सी पर घमासान, भाजपा नेताओं में लगी होड़; डेढ़ दशक से नहीं हुआ चुनाव..

बिलासपुर में जिला सहकारी बैंक के चेयरपर्सन की खाली कुर्सी अब सियासी अखाड़ा बन गई है। यह कुर्सी साल 2023 से खाली पड़ी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भाजपा नेता इस महत्वपूर्ण पद पर अपने किसी खास चेहरे को बैठाने की जुगत में लगे हैं, जिससे बैंक प्रबंधन से लेकर राजनीतिक गलियारों तक हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस सरकार के समय से चली आ रही मनोनीत चेयरपर्सन की परंपरा को भाजपा भी कायम रखने की कोशिश में है।

डेढ़ दशक से अटका चुनाव, क्यों?

अगर अतीत पर नजर डालें तो इस कुर्सी के लिए डेढ़ दशक से कोई चुनाव नहीं हुआ है। आखिरी बार 2010 में देवेंद्र पाण्डेय चुनावी प्रक्रिया से चेयरपर्सन बने थे। उनके जाने के बाद 2015 में मुन्नालाल राघवे को हटा दिया गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने 2020 में प्रमोद नायक को मनोनीत किया, जो 2023 तक इस पद पर रहे। यह साफ है कि चुनावी प्रक्रिया की जगह अब राजनीतिक दबाव और मनोनयन ही इस पद पर बैठने का रास्ता बन गया है।

राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई..

जिला सहकारी बैंक की चेयरपर्सन की कुर्सी सिर्फ एक वित्तीय पद नहीं है, बल्कि ग्रामीण और कृषि क्षेत्र से जुड़े फैसलों पर सीधा नियंत्रण रखने वाला एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पद बन गया है। यही वजह है कि सत्तारूढ़ दल हमेशा इस कुर्सी पर अपने करीबी को बैठाना चाहता है। इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति न केवल बैंक के वित्तीय निर्णय लेता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है, जिससे राजनीतिक दलों के बीच इसकी अहमियत और बढ़ जाती है।

फिलहाल, इस कुर्सी पर कौन बैठेगा, यह अभी तय नहीं है। सियासी हलकों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या इस बार चुनावी प्रक्रिया से नया चेयरपर्सन चुना जाएगा या फिर भाजपा भी कांग्रेस की तरह किसी को मनोनीत करेगी? अगले कुछ दिनों में यह सियासी तस्वीर साफ होने की उम्मीद है।