Action taken for giving wrong information in the assembly, 5 suspended including forest range officer !
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र 2025 के दौरान सरकार को उस वक्त बड़ी फजीहत का सामना करना पड़ा, जब विपक्ष ने वन विभाग पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया। कांग्रेस विधायक शेषराज हरवंश ने इंदिरा निकुंज माना रोपणी में संचालित कुंवारादेव महिला स्व सहायता समूह से जुड़े मामले में सरकार द्वारा गलत जानकारी देने का मुद्दा उठाया। विपक्ष के इस गंभीर आरोप के बाद वन मंत्री केदार कश्यप ने तत्काल जांच के आदेश दिए, जिसके बाद PCCF व्ही. श्रीनिवास राव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई।
देखें आदेश..

जांच रिपोर्ट सामने आते ही वन विभाग में हड़कंप मच गया। रिपोर्ट में साफ हुआ कि अधिकारियों ने न केवल तथ्यों को छुपाया, बल्कि विधानसभा को गुमराह करने की कोशिश भी की। सरकार की छवि पर सवाल उठते ही वन विभाग ने कड़ा रुख अपनाया और रायपुर परिक्षेत्र अधिकारी समेत 5 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। इनमें रायपुर वनमंडल के रायपुर परिक्षेत्र अधिकारी सतीश मिश्रा, माना नर्सरी प्रभारी वनपाल तेजा सिंह साहू, वनमंडल कार्यालय के सहायक ग्रेड-02 अविनाश वाल्दे और प्रदीप तिवारी, तथा परिक्षेत्र कार्यालय के लिपिक अजीत डडसेना शामिल हैं।
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इसके अलावा, वनमंडलाधिकारी लोकनाथ पटेल और उप वनमंडलाधिकारी विश्वनाथ मुखर्जी पर अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए शासन को पत्र भेजा गया है। मंत्री केदार कश्यप ने वन विभाग को दोबारा ऐसी गलती न करने की सख्त हिदायत दी है और विधानसभा में प्रस्तुत की जाने वाली जानकारी की पूर्ण सत्यता सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
इस मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ लापरवाही थी, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा खेल चल रहा था? विधानसभा में गलत जानकारी देना प्रशासनिक लापरवाही से ज्यादा गंभीर मामला है, क्योंकि यह जनता और जनप्रतिनिधियों के विश्वास के साथ धोखा है। जब मंत्री खुद जांच के आदेश देते हैं और दोषी पाए गए अधिकारियों को तत्काल निलंबित किया जाता है, तो यह साफ संकेत है कि कुछ न कुछ गलत जरूर हुआ था।
सरकार की सख्ती – या सिर्फ दिखावा ?
सरकार ने इस कार्रवाई के जरिए एक कड़ा संदेश जरूर दिया है कि गलत जानकारी देने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या इससे बड़े अधिकारी बच निकलेंगे? क्योंकि हमेशा छोटे कर्मचारियों पर ही गाज गिरती है, जबकि बड़े अधिकारी सिर्फ अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रक्रिया में उलझाकर समय निकाल लेते हैं।
विपक्ष ने इस मुद्दे को पूरी तरह से लपक लिया है। कांग्रेस ने इसे प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मामला बताते हुए वन विभाग में बड़े पैमाने पर हो रही गड़बड़ियों की जांच की मांग की है। वहीं, सरकार इस कार्रवाई को पारदर्शिता और जवाबदेही के रूप में पेश कर रही है।

