A religious place or a political arena? Babulal Singh Marapo was sidelined from the Kudargarh Festival..
सूरजपुर। कुदरगढ़ महोत्सव इस बार भक्ति से ज्यादा राजनीति का अखाड़ा बनता नजर आ रहा है। हाल ही में जिला पंचायत चुनाव जीतकर आए बाबूलाल सिंह मारापो को महोत्सव से किनारे कर दिया गया, जिससे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है। खुद मारापो ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और आरोप लगाया कि किसी साजिश के तहत उन्हें उनके ही क्षेत्र के सबसे बड़े आयोजन से दूर रखा गया है।

मारापो ने मीडिया के सामने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा, “आखिर यह साठगांठ किसकी है? मैं इस क्षेत्र का चुना हुआ जनप्रतिनिधि हूं, फिर भी मेरा नाम ही हटा दिया गया! प्रशासन और आयोजकों ने किसके इशारे पर यह खेल खेला है?” उन्होंने सवाल उठाया कि जब बाहरी जनप्रतिनिधियों को बुलाया गया, तो उन्हें क्यों दरकिनार कर दिया गया?

महोत्सव को लेकर राजनीति इस कदर गर्म है कि लोग इसे ‘नेताओं की जागीर’ कहने लगे हैं। टेंडर घोटाले से लेकर ज़मीन के बंटवारे तक, हर जगह नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हाल ही में नाका टेंडर में भी गड़बड़ी सामने आई, जहां पहले चुने गए व्यक्ति को हटाकर ऐसे व्यक्ति को टेंडर दे दिया गया, जिस पर 2013 में चोरी का आरोप था। सवाल यह है कि यह सब किसके इशारे पर हो रहा है?

पूर्व गृह मंत्री और ट्रस्ट के अध्यक्ष रामसेवक पैकरा को भी इस पूरे मामले की जानकारी थी, फिर भी उन्होंने चुप्पी साध रखी है। आखिर किस कारण से मारापो को इस आयोजन से दूर रखा गया? क्या यह लोकतंत्र का मजाक नहीं है?

कुदरगढ़ महोत्सव, जो आस्था का केंद्र होना चाहिए था, अब राजनीति की बिसात बन चुका है। जनता भी अब सवाल करने लगी है—आखिर यहां धर्म की जीत होगी या राजनीति की?

