
बिलासपुर।नदी मानव जीवन का मूल आधार रही है,इसलिए अरपा नदी को बिलासपुर की जीवन रेखा या आत्मा कहा जाता है यह नदी न केवल बिलासपुर का बल्कि छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी है।राज्य गीत का पहला शब्द अरपा नदी को समर्पित है इसके बावजूद भी इस नदी के भौतिक सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन का अबतक आभाव रहा है। इसलिए डॉ पुरुषोत्तम चन्द्राकर और दीपक चंद्राकर ने अरपा नदी का आदि से अंत तक गत चार वर्षों में यात्रा कर प्रचलित वैज्ञानिक परंपरा का अनुसरण बिलासपुर की जीवन रेखा की सत्य कथा को कहानी अरपा की पुस्तक में लिखा है।
पुस्तक को कुल आठ अध्यायों में विभाजित कर लिखा गया है तथा पुस्तक में अरपा नदी पर प्रचलित भ्रांतियों को भूवैज्ञानिक परंपरा के आधार पर दूर किया गया है।
पुस्तक में अरपा नदी पर प्रचलित पहली भ्रांति अरपा अरपा अन्तः सलिला नदी है इसका खंडन किया गया है और अरपा को बाह्य सलिला नदी कहा गया है। इसकी दूसरी भ्रांति उद्गम और संगम विषयक रही है जिसे भी सिद्धांत दूर कर अरपा को बहुनामी नदी कहा गया है पुस्तक के आधार पर यह नदी अपनी ऊपरी प्रवाह में आमानाला एवं अमरावती नदी कहलाती है तथा निचली प्रवाह में अरपा एवं अरना नाम से संबोधित है।
तीसरी भ्रांति यह रही कि अरपा बरसाती नदी है जो गर्मी के दिनों के सुख जाती है किंतु लेखक द्वय ने अपने शोध में पाया कि यह नदी अपने ऊपरी प्रवाह में सदानीरा नदी है तथा अब निचली प्रवाह में बरसाती नदी है जो गर्मी के दिनों में सुख जाती है।
पुस्तक में अरपा बेसिन के पर्यटनगत महत्व जलप्रपात उद्गम संगम एवं प्रसिद्ध घाटों का विस्तृत वर्णन किया गया है साथ ही नदी के प्रदूषण और संरक्षण पर चिंतन किया गया है,कुल मिलाकर यह पुस्तक जलविज्ञान पर शोध कर रहे छात्रों एवं अरपा के प्रेमियों के लिए पठनीय है।

