
बिलासपुर।गुजरात के सिंधी लोक कलाकारों की सुरताल पर बानगी से कोई भी मोहित हो जाएगा।. बिलासपुर में सिंधी लोक संगीत उत्सव मे रंग भरने पहुंचे ये लोक कलाकार सिंधी और कच्छी पारंपरिक संगीत को पीढ़ियों से जीवित रखे हुए हैं.
संगीत साधना और परिवार की आजीविका दोनों साथ चलता है गुजरात से पहुंचे सिंधी लोक कलाकारों के प्रमुख बुद्धा भाई ने बताया की उनका परिवार गाना बजाना कई पीढ़ियों से कर रहा है सिंधी के अलावा वे कच्छी गुजराती लोक संगीत भी जानते है. बातचीत करते हुए सिंधी लोक गीत की सुरताल पर सजी एक बानगी पेश की.
सिंधी सेंट्रल पंचायत और भारतीय सिंधु सभा के बुलावे पर यह कलाकार सिंधी लोक उत्सव में रंग भरने बिलासपुर पहुंचे थे
सात सदस्यों का दल गायकी के साथ साथ जिन वाद्ययंत्रों का प्रयोग करता है उसमे लोक वाद्य अलगोजा (दो बाँसुरी एक साथ बजाया जाता है) इसके अलावा चमड़ा मढ़ा मिट्टी का घड़ा, तंबूरा और खड़ताल प्रमुख है. दल के मुख्य बुद्धा भाई कह्ते है साल का चार महीना गुजरात टूरिज्म रण उत्सव मनाता है इससे हजारों लोक कलाकारों को अच्छा पारिश्रमिक मिलता है. बाकी समय बुलावे पर भारत के कई शहरों मे लुप्त परंपरा का लोगों को दर्शन कराने निकल पड़ते हैं ।
प्रधानमंत्री और दिग्गज अभिनेताओं के बीच दी है प्रस्तुति
बुद्धा भाई और टीम की हुनर बानगी ने दिग्गज अभिनेताओं खिलाड़ियों को भी कायल किया है। खूबसूरत संगीत से सजी गायकी के इस रूहानी अंदाज को उन्होंने बखूबी सुना और खूब सराहना भी की।
मुलाकात के दौरान बुद्धा भाई ने बातों को विराम देते हुए सिंधी काफी में एक कलाम सुनाया साथ मे बताया य़ह सूफ़ी शैली की तरह होता है जिसमें उमंग और स्तुति दोनों होते हैं .
गुजरात के कच्छ इलाके के पास भुज गांव के रहने वाले इन कलाकारों का जीवन लोक संगीत पर निर्भर है। बताते हैं हस्तकला मे आय पहले की तरह नहीं है मवेशी पालकर डेयरी से कुछ आजीविका होती है.

