महिला एवं बाल विकास विभाग में नई परिपाटी: 5 हजार वेतन वाली सहायिका पर काम का बोझ, त्योहार मना रही कार्यकर्ता..

बिलासपुर। महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत बिलासपुर के शहरी और बिल्हा परिक्षेत्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर इन दिनों वीआईपी संस्कृति हावी है। इन कार्यकर्ताओं ने अपना सारा काम केवल सहायिकाओं के भरोसे छोड़ दिया है और खुद ऐसो आराम फरमा रही हैं। यह सब कथित तौर पर सुपरवाइजरों की खुली शह पर चल रहा है, जिसने पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सरकंडा परियोजना से लेकर बिल्हा तक कई आंगनबाड़ी केंद्र ऐसे हैं, जहां की मुख्य कार्यकर्ता या तो त्योहार मनाने में मशगूल हैं या फिर शहर सपाटा और गुलछर्रे उड़ाने में लगी हुई हैं। विडंबना यह है कि आंगनबाड़ी सहायिकाओं का मासिक वेतन केवल 5000 रुपये है, इसके बावजूद उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर कार्यकर्ता का पूरा काम करवाया जा रहा है।
फेस कैप्चरिंग का हाईटेक काम भी सहायिका के सिर, सुपरवाइजर के मौखिक आदेश से दहशत..
वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्रों में फेस कैप्चरिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य कार्यकर्ताओं को दिए गए हैं, लेकिन सरकंडा परिक्षेत्र की कुछ कार्यकर्ताओं ने यह काम भी पढ़ी लिखी सहायिकाओं के हवाले कर दिया है। सहायिकाएं न केवल बच्चों को केंद्र तक लाने का अपना मूल काम कर रही हैं, बल्कि कार्यकर्ता की डिजिटल ड्यूटी भी निभा रही हैं।
सूत्रों का कहना है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की इस मनमानी के पीछे सुपरवाइजरों के मौखिक आदेश हैं। सुपरवाइजरों ने अप्रत्यक्ष रूप से सहायिकाओं को इस तरह दहशत में ला दिया है कि वे कार्यकर्ता के गलत व्यवहार या काम के बोझ के खिलाफ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं।
विभाग में चल रही इस वर्क फ्रॉम सहायिका परिपाटी पर तंज कसते हुए यह कहा जा सकता है कि, अगर पूरे बिलासपुर सरकंडा और बिल्हा परिक्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्रों की निष्पक्ष जांच की जाए, तो अधिकतर सहायिकाएं बच्चों को लाने का काम छोड़कर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की ड्यूटी निभाती दिखाई देंगी। यह सीधे तौर पर कर्मचारियों के शोषण और सरकारी योजनाओं की अनदेखी का मामला है।
अधिकारियों ने इस पूरे मामले पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों ने बताया कि यदि शिकायत की पुष्टि होती है तो दोषी कार्यकर्ताओं और उनकी आरामपसंद सुपरवाइजरों पर कार्रवाई की जा सकती है।

