ब्रह्मचारी तालाब की बदल गई तस्वीर – हर्ष छाबरिया बने स्वच्छता के प्रेरणास्तंभ..जन सहयोग से जलकुंभी और गंदगी से जूझते तालाब को बनाया आचमन योग्य, घाटों की सफेदी ने लौटाई सुंदरता..

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष एवं समाजसेवी हर्ष छाबरिया ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि सच्ची नीयत, जन सहयोग और निरंतर प्रयास से कोई भी सार्वजनिक स्थान न केवल साफ किया जा सकता है, बल्कि समाज को जागरूक करने का उदाहरण भी बन सकता है।

पुराना गौरेला स्थित ब्रह्मचारी तालाब, जो वर्षों से गंदगी और उपेक्षा का शिकार था, अब एक साफ-सुथरे और सौंदर्यपूर्ण स्वरूप में सामने आ चुका है। तालाब की जलकुंभी, झाड़ियाँ, कांटे और कचरे से अटी पड़ी सतह को साफ कर, पानी में चूना डालकर उसे पूजा और तर्पण के योग्य बनाया गया है।

तीन सप्ताह में बदली तालाब की तस्वीर..

हर्ष छाबरिया की अगुवाई में चले तीन सप्ताह के इस जनसहयोगी अभियान में तालाब की सतह से जलकुंभी हटाई गई, घाटों की सफेदी करवाई गई और रिटेनिंग वॉल की मरम्मत की गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब यह तालाब पहचान में भी नहीं आता, क्योंकि पहले यहां पांव रखने की जगह नहीं होती थी।

पितृपक्ष बना बदलाव की प्रेरणा..

डॉ. संजय शर्मा ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान वे तर्पण हेतु अपने पिता के साथ तालाब पर पहुंचे, लेकिन पानी आचमन योग्य भी नहीं था। तब उन्होंने समाजसेवी हर्ष छाबरिया से संपर्क किया। छाबरिया ने बिना देरी जन सहयोग जुटाया और तालाब की सफाई का बीड़ा उठाया – जो अब मिसाल बन चुकी है।

बुजुर्गों की आंखों में सुकून..

स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि 30 सालों से वे इस तालाब की उपेक्षा देख रहे थे, लेकिन आज पहली बार यह उन्हें धरोहर की तरह साफ और व्यवस्थित दिखाई दे रहा है।

इस सराहनीय पहल में अनेक लोगों ने सक्रिय सहयोग किया..

मुकेश दुबे (अध्यक्ष, नगर पालिका),डॉ. संजय शर्मा (कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन संयोजक),डॉ. मोहनलाल चढ़ार,एस. हेमंत कुमार,राकेश दुबे,सिद्धार्थ दुबे,गगन अग्रवाल,अमोल पाठक,संतोष चक्रधारी,सतीश धाकरिया,प्रमोद अग्रवाल,महेश राठौर,पवन कश्यप,आयुष पांडे,पीयूष अग्रवाल,अनिल पंजाबी,नारायण साहू सहित दर्जनों स्वयंसेवकों और स्थानीय निवासियों ने मिलकर तालाब को नवजीवन दिया।

हर्ष छाबरिया का कहा कि “सफाई से ही सुंदरता आती है। अगर हर मोहल्ला, गांव और नगर में लोग मिलकर ऐसे प्रयास करें, तो पूरे समाज की तस्वीर बदल सकती है। यह सिर्फ तालाब नहीं, हमारी सांस्कृतिक पहचान और सामूहिक ज़िम्मेदारी है।”