बिलासपुर। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) द्वारा भूमि अधिग्रहण के एक पुराने मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महिला को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने निर्मला देवी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनके बेटे को नौकरी देने का निर्देश दिया है। यह फैसला दशकों पुराने संघर्ष के बाद आया है जहां एक गलत व्यक्ति ने महिला के नाम पर नौकरी हासिल कर ली थी और बाद में एसईसीएल ने उनके वास्तविक बेटे को नौकरी देने से इनकार कर दिया था।

यह मामला भाटापारा निवासी निर्मला देवी से जुड़ा है जिनकी 0.21 एकड़ जमीन वर्ष 1981 में एसईसीएल की दीपका परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। भूमि अधिग्रहण के चार साल बाद 1985 में निर्मला देवी को मुआवजा तो मिल गया लेकिन पुनर्वास नीति के तहत उनके परिवार के किसी सदस्य को नौकरी नहीं दी गई। इसी बीच नंदकिशोर जायसवाल नामक एक व्यक्ति ने खुद को निर्मला देवी का बेटा बताकर खदान में नौकरी हासिल कर ली।
जब इस धोखाधड़ी का खुलासा हुआ तो निर्मला देवी ने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। जांच के बाद नंदकिशोर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बावजूद एसईसीएल ने निर्मला देवी के असली बेटे उमेश कुमार तिवारी को नौकरी देने से मना कर दिया।
एसईसीएल की दलीलें खारिज..
एसईसीएल ने अपने बचाव में तर्क दिया कि अधिग्रहण के समय भूमि रिकॉर्ड में निर्मला देवी का नाम नहीं था। उनका बेटा उमेश वर्ष 1985 में पैदा हुआ जबकि भूमि अधिग्रहण 1981 में हुआ था। इसलिए उमेश उस समय आश्रित नहीं माना जा सकता था। हालांकि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल की एकलपीठ ने एसईसीएल की इन दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि जब मुआवजा स्वयं निर्मला देवी को दिया गया था तो उन्हें ही भूमि की स्वामित्वधारी माना गया था। केवल नामांतरण की तिथि को आधार बनाकर उनके बेटे को नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि नियुक्ति प्रक्रिया में हुई गलती का खामियाजा पीड़िता को नहीं भुगतना चाहिए। इसी सिद्धांत के तहत हाईकोर्ट ने 6 जुलाई 2017 को जारी एसईसीएल के नियुक्ति अस्वीकृति आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि उमेश कुमार तिवारी को उसी तिथि से नियुक्त किया जाए और उन्हें समस्त सेवा लाभ भी दिए जाएं।

