बिलासपुर । हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने साफ कहा कि पत्नी के चरित्र पर बिना सबूत आरोप लगाना क्रूरता के समान है। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की बेंच ने यह फैसला सुनाया। यह मामला रायगढ़ जिले के एक युवक और ओडिशा के सुंदरगढ़ की युवती से जुड़ा है, जिनकी शादी 24 जून 2012 को हुई थी। उनके दो बच्चे हैं, जो फिलहाल पत्नी के साथ रह रहे हैं।

शादी के 4-5 साल बाद से ही पति-पत्नी के बीच रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे। साल 2018 में पत्नी दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई। इसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दी।
पति के आरोप और पत्नी का पक्ष..
पति ने अपनी अर्जी में कहा कि दूसरे बच्चे के जन्म के बाद पत्नी का व्यवहार उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक हो गया। वह बिना बताए घर से बाहर जाने लगी और ज्यादातर समय बाहर ही बिताती थी।
पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी का अपने बहनोई के साथ अवैध संबंध था और वह उसकी अनुपस्थिति में उसे रात में घर बुलाती थी। पति के मुताबिक, 31 अगस्त 2018 को पत्नी अपने किसी पुरुष मित्र के साथ बच्चों को लेकर चली गई और बाद में तलाक के लिए दबाव बनाने लगी। पति ने इस संबंध में थाने में रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी।
वहीं, पत्नी ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उसने कोर्ट को बताया कि शादी के कुछ महीनों बाद से ही पति और ससुराल वाले उसके साथ मारपीट करते थे और मायके से नकदी व गहने लाने के लिए दबाव बनाते थे। पत्नी ने कहा कि वह कभी किसी के साथ अकेली बाहर नहीं गई और न ही उसने कभी ननंद के पति से कोई गलत बात की। उसने यह भी बताया कि वह खुद मायके नहीं गई, बल्कि पति और ससुराल वालों ने धोखे से उसे मायके में छोड़ दिया था। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी।
हाईकोर्ट का अहम फैसला..
फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की। उसने तर्क दिया कि पत्नी नए पुरुषों के साथ रह रही है और गलत संगत में पड़ गई है, जिसका बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए उसे तलाक दिया जाए और बच्चे उसे सौंप दिए जाएं।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने आदेश में स्पष्ट किया कि पति ने पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं दिया। मोबाइल पर बातचीत के अलावा कोई इलेक्ट्रॉनिक सबूत उपलब्ध नहीं था। कोर्ट ने कहा कि केवल देवर का घर आना जाना यह साबित नहीं करता कि उनका विवाह के बाहर कोई संबंध था।
हाईकोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि पत्नी के चरित्र की पवित्रता पर आरोप लगाना पति की तरफ से पत्नी के खिलाफ क्रूरता के समान है। कोर्ट ने माना कि पति ने अपनी पत्नी के साथ क्रूरता की, जिसके कारण पत्नी को अलग रहने का उचित कारण मिला। इन सभी तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया और पति की अपील को खारिज कर दिया।

