बिलासपुर। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के निजी स्कूलों के शिक्षकों को सरकारी किताबें लेने के लिए 130 किलोमीटर का लंबा सफर तय कर बिलासपुर पहुंचना महंगा पड़ गया। सुबह से दोपहर तक इंतजार करने के बाद भी जब किताबें नहीं मिलीं और सर्वर डाउन की बात सामने आई, तो शिक्षकों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने जमकर हंगामा किया। यह घटना डिपो प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करती है, जहां किताबों की स्कैनिंग न होने और सर्वर की समस्या ने शिक्षकों की परेशानी बढ़ा दी।

जानकारी के अनुसार, गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के निजी स्कूलों के शिक्षकों को सरकारी किताबें लेने के लिए बिलासपुर स्थित डिपो पर बुलाया गया था। सुबह 8 बजे से ही सौ से अधिक शिक्षक डिपो पर पहुंच गए थे, जिनमें हर स्कूल से केवल दो शिक्षक आए थे। यहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि किताबें ले जाने से पहले उनकी स्कैनिंग करनी होगी। काम शुरू हुआ तो सर्वर लगातार डाउन होने लगा, जिससे स्कैनिंग में अत्यधिक समय लगने लगा।
शिक्षकों ने बताया कि वे इतनी दूर से आए हैं और उन्हें सुबह 8 बजे बुलाया गया था। उन्हें यह बात यहीं आकर पता चली कि किताबें स्कैनिंग के बाद ही मिलेंगी। एक स्कूल को करीब दो से दो हजार पुस्तकें बांटनी थीं, और स्कैनिंग करने में ही सात से आठ घंटे का समय लग रहा था। ऊपर से सर्वर की गड़बड़ी ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी। घंटों इंतजार और लगातार मिल रही असुविधा से परेशान होकर शिक्षकों ने आखिरकार हंगामा करना शुरू कर दिया।
हंगामे के बाद डिपो प्रबंधन द्वारा समझाइश दी गई, और किताबों के वितरण का काम देर रात तक जारी रहा। नाराज शिक्षकों ने सीधे तौर पर डिपो प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया। उनका कहना था कि डिपो में किताबें उपलब्ध होने के बावजूद उन्हें जानबूझकर शिक्षकों को नहीं दी जा रही थीं।
वहीं, सरकारी स्कूलों के लिए किताबों के वितरण का नियम अलग है। उनकी किताबें सीधे संकुल केंद्रों तक पहुंचाई जा रही हैं और वहां से स्कूलों में भेजी जा रही हैं। बच्चों को किताबें स्कैनिंग के बाद बांटी जा रही हैं। हालांकि, वहां भी सर्वर की दिक्कत के चलते वितरण में देरी हो रही है।

