
बिलासपुर / वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम-1972 के तहत बंदरों को खाने-पीने का सामान डालना कानूनी जुर्म है। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ WPA के तहत वन विभाग कानूनी कार्रवाई कर सकता है । इस एक्ट के तहत आदेशों का उल्लंघन करने पर सात साल की सजा व 25 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है।
ये नियम, कानून और होने वाली सजा से बेख़बर लोग बंदरों को भिखारी बना चुके हैं, बंदरों की नई पीढ़ी उसे आगे बढ़ा रही है। बंदरों का पूरा कुनबा अब मानवीय भीख की राह ताकता दिखाई पड़ता है। देश की सरकारों ने जिस तरीके से एक बड़े वर्ग को मुफ्तखोरी का बताशा बांटकर निकम्मा बना दिया है ठीक उसी तरह की मुफ्तखोरी की ख़ुराक बंदरों को खिलाकर चंद लोग शायद अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हों मगर इंसानी कर्मों की सज़ा बंदरों की कईयों पीढ़ियां भुगतती हैं, चाहे हादसों की शक्ल में या फिर शिकार के रूप में। यकीन मानिये बन्दर जितना सामाजिक और संवेदनशील प्राणी हैं उससे कहीं अधिक घातक भी।
अक्सर आपने देखा होगा, खासकर वन क्षेत्रों में बन्दर सड़क के इर्द-गिर्द बड़ी तादात में दिखाई देते हैं। सड़क से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति की ओर बेबसी और लाचार आँखों से कुछ मिल जाने की उम्मीद देखती हैं। वजह है सड़क से गुजरने वाले कुछ असभ्य, अधिकाँश शिक्षित सभ्य लोग उन्हें चना, केला, रोटी या फिर बचा हुआ खाद्य पदार्थ दे कर पुण्य प्राप्ति महसूस करते हैं। कुछ लोग तो परिवार के साथ ऐसी जगहों पर बंदरों को खाद्य सामग्री देकर मनोरंजन भी कर लेते है। शायद ऐसे लोग उसे आस्था या अपनी संवेदनशील भावना से जोड़कर देखते हों मगर इंसानों की इन्हीं हरकतों के कारण सड़क हादसों में बंदरों की मौत अब आम है। कई बार मुफ्तखोर बंदरों की भीड़ कुछ ना मिलने पर इंसानों पर भी गुस्से से टूट पड़ती है।
वन क्षेत्रों के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी बंदरों का उत्पात अब सामान्य घटनाक्रम हो चला है। हालांकि शहरी क्षेत्र में मकाऊ (लाल मुंह) प्रजाति के बन्दर नहीं आते हैं लेकिन जो हैं वो भी इंसानों की अच्छी-बुरी आदतों के शिकार हो गए हैं। मंदिरों, ढाबों व रेस्तरां आदि के आस-पास उन्हें खाने को आसानी से मिल जाता है। इसके चलते शहर में उनकी आबादी भी लगातार बढ़ रही है।
इसके साथ ही बंदरों को रोकने के मामले में जब भी वन अफसरों से बात की जाये वे अपनी मजबूरियों का रोना रोकर जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। आपको बता दें कि बंदर वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत संरक्षित है और इसलिए उन्हें मारा नहीं जा सकता है। इसी तरह मकाऊ प्रजाति के बंदर भी एक संरक्षित प्रजाति है और इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत खाना खिलाना सख्त रूप से वर्जित है। देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ बंदरों को खाद्य सामग्री देने पर सख़्त कार्रवाही का प्रावधान भी है।
आपसे और आपके समस्त परिवार से गुजारिश है कि जब भी आप ऐसे किसी रास्तों से गुजरें जहाँ सड़क के इर्द-गिर्द बंदरों का मेला हो वहाँ न रुकें ना उन्हें खाने-पीने की सामग्री दें। यकीन मानिये आपकी इस पहल से असंख्य बंदरों को आप भिखारी बनने और उनकी जान जाने से बचा सकते हैं।
सत्यप्रकाश पाण्डेय की रिपोर्ट
(तस्वीरें / अचानकमार टाईगर रिजर्व से)
