
संस्कृति की राह छोड़कर भटक रहे हम इधर उधर पुरखों से जो मिली विरासत वो अपनी अनमोल धरोहर-गीत भरत वेद
बिलासपुर।आदर्श कला मंदिर बिलासपुर द्वारा नाटक हम किधर जा रहे का मंचन सिम्स ऑडिटोरियम में हुआ।नाट्यकर्मी भरत वेद द्वारा लिखित एवं निर्देशित हम किधर जा रहे नाटक में भारतीय संस्कृति का महत्व और वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों के ह्रास को रेखांकित किया गया ।यह संस्था की यह 101 वीं नाट्य प्रस्तुति थी।कार्यक्रम में डॉ संजय अलंग, संभागायुक्त बिलासपुर, संतोष कुमार सिंह पुलिस अधीक्षक बिलासपुर,डॉ विनय कुमार पाठक पूर्व अध्यक्ष छ ग राजभाषा आयोग,अजय श्रीवास्तव संयोजक स्पीक मैके छ ग ,प्रवीण झा समाजसेवी,डॉ के के सहारे डीन सिम्स अतिथि रहे।
कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर किया। संस्था के अध्यक्ष एस डी मानिकपुरी एवं भरत वेद ने अतिथियों का पुष्प गुच्छ दे कर स्वागत किया। डॉ संजय अलंग ने कहा कि स्था बहुत ही कठिन और अनूठा कार्य कर रही है नाटक तैयार करना उसका मंचन करना आज के दौर में एक श्रमसाध्य कार्य है।उन्होंने दर्शकों को भी बधाई दी और कहा कि नाट्य विधा के लिए दर्शकों का साथ होना बहुत जरूरी है।
पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार सिंह ने कहा कि नाटक आज भी व्यक्ति और समाज के चरित्र संवेदना और समस्याओं को उद्घाटित करने वाला सशक्त माध्यम है ।संस्था दौर किया जा रहा प्रयास अद्भुत है।वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर विनय कुमार पाठक ने कहा कि एक प्रयोगात्मक नाटक है जिसमें कोई नायक नहीं है। घटनाओं को एक दूसरे से अच्छे से जोड़ा गया है।
डॉ अजय पाठक ने कहा कि यह मनोरंजन से भरपूर संदेशपरक नाटक है।
नाटक हम किधर जा रहे में 2 सूत्रधार आज की परिस्थिति,समाज में नैतिक मूल्यों के ह्रास को उद्घाटित करते हैं… छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से उसे समझाने का प्रयास किया।जिसमें शराबी द्वारा घरेलू हिंसा,व्यापारियों द्वारा मिलावट जमाखोरी भ्रष्टाचार, पुलिस प्रशासन पर व्यंग करती विक्षिप्त स्त्री, समाज में स्त्रियों की स्थिति और बलात्कार की घटनाएं, मंत्री और के साथियों द्वारा किया जाने वाला दुराचार, जमीन जायदाद के लिए बाप बेटे का द्वंद, ढोंगी पाखंडीओं द्वारा धर्म का नाश को मंच पर बखूबी पेश किया गया।अंत मे गीत
संस्कृति की राह छोड़कर भटक रहे हम इधर उधर पुरखों से जो मिली विरासत वो अपनी अनमोल धरोहर….ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सभी कलाकारों ने अपने पात्र को जीवंत कर दिया
डॉ प्रदीप निर्णजक और श्री कुमार ने सूत्रधार की भूमिका निभाई। शांतनु कपूर शराबी और सुराणा संस्कृति सिंह शराबी की पत्नी और युवती के किरदार में खूब जमे। विश्वनाथ राव ने सेठ जी,मनीष सलाम ने रामु नौकर,प्रशंसा शुक्ला ने डॉली,निशा चेलकर ने अर्ध विक्षिप्त स्त्री,भालचंद्र मराठे ने मंत्री जी,अमित शुक्ल ने लोटेवाले बाबा,नौशाद खान ने हरिराम,मनीष सोनवानी ने देवदास,रमेश साहू,शंकर दयाल और जगमोहन सेन ने गुंडे, नरेंद्र सिंह चंदेल ने अंधे संगीतकार आकाश तिवारी ने अशर्फीलाल और सोमनाथ, दिग्विजय पाठक ने मथुरा, राजा सोनी ने मानसिंह, हर्षिता कुमार ने नृत्यांगना, क्षितिज महोबिया और कृष्णा देवांगन ने श्रद्धालु भक्त के किरदार को जीवंत कर दिया और खूब तालियां बटोरी।
सचिन सिंह विकास सिंह और नारायण सिंह ने संगीत संयोजन एवं गायन से नाटक को ऊंचाई दी। शत्रुघ्न धृतलहरे ने पार्श्व पठन की जिम्मेदारी निभाई। शुभ्रा दत्ता ने मंच संचालन किया।
प्रत्येक वर्ष एक नए ज्वलन्त मुद्दे को लेकर संस्था नाट्य मंचन करती है।।संस्था का यह प्रयास है कि सामाजिक मुद्दों पर जन जागरूकता पैदा की जाए।नाट्य विधा को बचाते हुए शहर के विभिन्न कलाकारों को मंच प्रदान कर उनकी प्रतिभा को निखारा जाए।कला और संस्कार की राजधानी बिलासपुर के सुधिजन दर्शकों ने नाटक को खूब सराहा।
कार्यक्रम में शहर के गणमान्य जन उपस्थित रहे जिसमें प्रमुख थे-आलोक त्रिपाठी, राघवेंद्र धर दीवान,आनंद प्रकाश गुप्ता,सुनील वैष्णव,सुनील दत्त मिश्र,महेंद्र साहू,संजय पाण्डेय, अशरफी लाल सोनी,सुमित शर्मा आदि।

