बिलासपुर।अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस के पूर्व संध्या पर राष्ट्रीय कवि संगम बिलासपुर इकाई के तत्वावधान में चाहिल निवास, यदुनंदन नगर-तिफरा में विकलांग विमर्श सह काव्य गोष्ठी का आयोजन डा विनय कुमार पाठक-राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद के मुख्य आतिथ्य, डा अरुण कुमार यदू वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक की अध्यक्षता एवं डा राघवेन्द्र दुबे प्रांतीय अध्यक्ष, तुलसी साहित्य अकादमी के विशेष आतिथ्य में सोत्साह संपन्न हुआ। इस अवसर पर डा पाठक ने कहा कि दिव्यांग विमर्श आधुनिकता का तकाजा है, बीसवीं सदी के छठवें दशक के प्रारम्भ में स्त्री, दलित आदिवासी विमर्श जो लिंग और जाति पर आधारित विमर्श हैं, वहीं लिंग,जाति से रहित विशुद्ध मानवतावादी दृष्टि पर आधारित विकलांग विमर्श नव्य विमर्श के रुप में देश-विदेश में चर्चित रहा है। डा. यदू जी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि बीसवीं सदी के प्रथम दशक में विकलांग विमर्श अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद बिलासपुर की उपज है जिसे पूरे भारत ने स्वीकारा है। डा राघवेन्द्र दुबे ने कहा कि इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में विकलांग और दूसरे दशक में किन्नर विमर्श समकालीन समीक्षा का उत्कर्ष है, इस तरह से वंचित व वर्जित विमर्श मुख्य धारा से जुड़ कर सच्चे अर्थों में मानवता का मान रख रहे हैं। विकलांगता में दिव्यांगता के विमर्श गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कार्यक्रम के संयोजक अंजनी कुमार तिवारी-अध्यक्ष, राष्ट्रीय कवि संगम मंच बिलासपुर ने इसे सामाजिक सरोकार का महत्वपूर्ण मानवीय कार्य बताया तथा इसके लिए जन सहभागिता व जन जागरण की आवश्यकता महसूस किया। इस विमर्श सह काव्यपाठ आयोजन में दिनेश्वर जाधव ने “आदि से अनन्त तक है इनका ज्ञान
भले ही विकलांग हैं,पर हैं गुणों के खान”, दिनेश तिवारी ने अपनी रचना से विकलांगता के आर्त मन को टटोलने का प्रयास किया, डा ओम प्रकाश बिरथरे ने अपने आध्यात्मिक भाव भरे रचना-“सभी जीव करते यहां, निर्धारित निज कर्म।
मनुज छोड़ सब मानते,परमात्मा का धर्म”, आचार्य बसंत पाण्डेय ऋतुराज ने ” दिव्यांगो की सेवा ही,मानव का शुभ धर्म, निज संस्कृति सम्मान से,निश दिन करिए कर्म”, रामेश्वर शाण्डिल्य ने “दिब्यांगो ने अपनी प्रतिभा जग को दिखाया है,संगीत कला साहित्य में हुनर दिखाया है, डा राजेन्द्र कुमार वर्मा ने अपनी कुंडलियां “विकलांगता से मित्रों,कभी भी डरें न हम, श्रीमती शोभा चाहिल ने अपने सकलांग पति के विकलांग हो जाने की कठिन स्थिति का मार्मिक विवरण प्रस्तुत किया, हीरा सिंह चाहिल ने अपनी सकलांग से विकलांगता की सच्ची कहानी के साथ”विकलांग जीवन बहुत कठिन है, विकलांगता इस जगत से मिटा दो”, राकेश अयोध्या ने युवकों के प्रतिनिधि के रूप में अपने विचार रखे, संतोष धृतलहरे ने भी ग्रामीण परिवेश को लेकर अपने विचार रखे, अरुण कुमार यदू ने “इरादों को फौलादों से तोल लिए हैं, शबनम से जैसे बोल लिए हैं”, नील गगन में फिर उड़ने तैयारी में,अब उसने पंख खोल लिए हैं, “अंजनी कुमार तिवारी ‘सुधाकर’ ने अपनी रचना “रहो न विकलांग दिव्यांग बनाओ, अपने सपनों को पंख लगाओ”, कार्यक्रम का सफल संचालन अंजनी कुमार द्वारा, स्वागत संबोधन रामेश्वर शाण्डील्य एवं आभार प्रदर्शन हीरा सिंह चाहिल द्वारा किया गया। इस अवसर पर अंकुर सिंह चाहिल, जागृति चाहिल, घसिया राम लहरे, तुला राम डहरिया, संतोष धृतलहरे, पूर्णा राम जोगीवंशी, रशीद खान विशेष रूप से उपस्थित थे


