*पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव पर 115 श्री मनोकामना घृत ज्योति कलश प्रज्ज्वलित हुए*
बिलासपुर। सरकण्डा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। पीताम्बरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के प्रथम दिन प्रातःकालीन श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार शैलपुत्री देवी के रूप में किया गया।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक किया गया।परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया जा रहा है।श्री मनोकामना घृत ज्योति 115 कलश अभिजीत मुर्हूत 11:30 से 12:30 मध्यान्ह मे प्रज्ज्वलित किया गया।तत्पश्चात ध्वजारोहण,ज्वारोपणम् किया गया।श्री दुर्गा सप्तशती पाठ एवं श्री पीताम्बरा हवनात्मक यज्ञ रात्रिकालीन प्रतिदिन रात्रि 8:30 बजे से रात्रि 1:30 बजे तक निरंतर चलता रहेगा तत्पश्चात महाआरती रात्रि 1:30 बजे किया जा रहा है।
नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में पूजन श्रृंगार आराधना किया जाएगा नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा की जाती है। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। शास्त्रों में माँ ब्रह्मचारिणी को वेद-शास्त्रों और ज्ञान की ज्ञाता माना गया है। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजयुक्त है। माँ ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है।भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ। साधक और योगी इस दिन अपने मन को माँ के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है।
साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है।माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।


