रायपुर / बड़ी पुरानी और प्रचलित वाक्य है कि, कांग्रेस को और कोई नहीं कांग्रेस के लोग ही हारते हैं, छत्तीसगढ़ में एक बार फिर या वाक्य सार्थक होता दिखाई दे रहा है दरअसल छत्तीसगढ़ में सत्ता जाने के बाद कांग्रेस में भूचाल मचा हुआ है, बड़े-बड़े दिग्गज पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम रहे हैं तो वहीं डूबती नैया में छेद करने वालों की भी कहीं कमी नजर नहीं आ रही है.. फुस्स पटाखों के सहारे मैदान में उतरी कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 11 सीटों से बहुत ज्यादा उम्मीद लगाती नजर नहीं आ रही है क्योंकि बाहरी और आपसी लड़ाई में उलझे नेता लोकसभा में उतर तो गए हैं लेकिन उनकी पहली लड़ाई अपने ही पार्टी के उन दिमको से है जिन्होंने पिछले कई साल में कांग्रेस को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है..

विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में पुराने और सच्चे कांग्रेसियों ने गठबंधन में बदलाव की मांग के सुर ऊंचे कर दिए थे, लेकिन दीमको की टीम में उनको कांग्रेसियों की आवाज को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसका असर लोकसभा चुनाव के पहले देखने को मिला पूरे प्रदेश में सैकड़ो की संख्या में कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन छान लिया इतना ही नहीं लोकसभा प्रत्याशियों के चयन के बाद खुले मंच से ही अपने नेता को कांग्रेसी गरियाने भी लग गए जिनकी सजा भी उन्हें पार्टी से निष्कासित कर मिला वही जिन्हें पार्टी में सम्मान ना मिला उन्होंने पार्टी को छोड़ना ही मुनासिब समझा,
पार्टी को निपटने और संगठन में खोखलापन लाने पार्टी के कई नेता लंबे समय से खुलकर काम करते नजर आ रहे हैं लेकिन आला कमान और ऊंचे नेताओं से मिली शह की वजह से उन्हें कोई भी सीधे मुंह चुनौती देता नजर नहीं आता है पार्टी के खिलाफ ठीक विधानसभा चुनाव से पहले वायरल ऑडियो की वजह से कांग्रेस को बहुत नुकसान उठाना पड़ा था वही टिकट खरीद फरोक का आरोपी पार्टी के जिला अध्यक्ष पर लगा था.. लेकिन अपने वार्ड से ही नापसंद किए जाने वाले जिला अध्यक्ष को बेलतरा की टिकट दिखा कांग्रेस ने बंटाधार की स्थिति पहले ही खुद के लिए निर्मित कर ली थी जिसका असर भी विधानसभा चुनाव में देखने को मिला..
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लोकसभा प्रत्याशी को खोखला करने यह दीमक अपने काम पर लग गए हैं, लोकसभा प्रत्याशी ने इन्हें बड़ी जिम्मेदारी दे दी है जिसे यह खुद के चुनाव के समय भागते रहे अब दूसरे के चुनाव में कितना निभाते हैं या तो देखने वाली बात होगी लेकिन सूत्रों की माने तो सिर्फ मंचों के बाद अपना रास्ता नापने वाले जिला अध्यक्ष लोकसभा को लेकर कोई बहुत अच्छी रणनीति बनाते नजर नहीं आ रहे हैं..

